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________________ क) दसवे आलियं से प्राकृत की - पढमं नाणं तओ दया । ४/१० आचरण से पहले जानो । पहले ज्ञान है फिर दया । - ― प्रमुख सूक्तियाँ अन्नाणी किं काहीं किं वा नाहिइ छेय पावगं । ४/१० अज्ञानी क्या करेगा जो श्रेय और पाप को भी नहीं जानता ? जो जीवे वि वियाणाइ अजीवे वि वियाणई । जीवाजीवे वियाणतो सो हु नाहिइ संजमं ॥ ४ / १३ ॥ - • जो जीवों को भी जानता है, अजीवों को भी जानता है, वही जीव और अजीव दोनों को जानने वाला, संयम को जान सकेगा । काले कालं समायरे । ५/२/४ - हर काम ठीक समय पर करो । - जे न वंदे न से कुप्पे वंदिओ न समुक्कसे । ५/२/३० सम्मान न मिलने पर क्रोध और मिलने पर गर्व मत करो। अहिंसा निउणं दिट्ठा सव्वभूएसु संजमो । ६/८ सब जीवों के प्रति जो संयम है, वही अहिंसा है। मुच्छा परिग्गहो वृत्तो । ६ / २० - - मूर्च्छा ही परिग्रह है। सुयलाभे न मज्जेज्जा । ८/३० • ज्ञान का गर्व मत करो। Jain Education International जरा जाव न पीलेइ वाही जाव न वड्डई । जाविंदिया न हायंति ताव धम्मं समायरे ।। ८/३५ ।। १३१ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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