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________________ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि आठ भाषाओं से युक्त .. चन्द्रप्रभस्वामि स्तवन छह प्रकार की प्राकृतों का श्री चन्द्रप्रभस्वामी स्तवन में एकसाथ प्रयोग किया गया है। इसके रचयिता आचार्य जिनप्रभसूरि हैं। षड्भाषामय यह स्तवन नामक तेरह पद्यों से युक्त है। वस्तुतः हमारे आचार्य अपनी रचनाओं में अद्भुत प्रयोग करते रहते थे। उसका प्रत्यक्ष उदाहरण यह लघु स्तवन है। इसकी हस्तलिखित प्रति भोगीलाल लहेरचन्द इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी, दिल्ली के शास्त्र भण्डार में सुरक्षित है। इसी अप्रकाशित प्रति के आधार पर इस अद्भुत स्तवन का परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है। इसमें आ. जिनप्रभसूरि ने प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर अन्तिम एवं चौबीसवें तीर्थंकर महावीर पर्यन्त इन चौबीस तीर्थंकरों की श्रृंखला में अष्टम तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभु स्वामी का गुणानुवाद स्वरूप मात्र एक ही स्तवन दो प्रकार की संस्कृत के साथ प्राकृत की अलग-अलग छह प्राकृत भाषाओं में - इस प्रकार कुल आठ भाषाओं में रचना करने का अद्भुत एवं सफल प्रयोग किया है। यह बात उन्होंने अन्तिम पद्य में सूचित की है। किन्तु उन्होंने संस्कृत, प्राकृत (महाराष्ट्री सामान्य प्राकृत), शौरसेनी, मागधी, पैशाचिक, चूलिका पैशाचिक, अपभ्रंश तथा समसंस्कृत - इस तरह इन आठ भाषाओं में क्रमशः प्रत्येक भाषा में एक एवं कहीं-कहीं दो पद्यों द्वारा स्तवन की रचना की है। - भाषा की दृष्टि से इस स्तवन के लेखक ने जहाँ प्राकृत के प्रमुख भेदों में से प्रायः सभी प्रमुख प्राकृतों में गाथायें निबद्ध की हैं, वहीं संस्कृत भाषा के दो भेद संस्कृत और समसंस्कृत – इन दो भेदों में क्रमशः आदि और अन्त में पद्य तथा नवम एवं दशम पद्य अपभ्रंश भाषा में रचे हैं। इस प्रयोग से हमें संस्कृत के साथ-साथ विभिन्न भाषाओं के साथ प्राकृत व्याकरण की दृष्टि से तुलनात्मक अध्ययन का अच्छा . ११३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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