SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज) अपभ्रंश साहित्य में जनवादी स्वर । अपभ्रंश साहित्य में प्रबन्ध काव्य, खण्डकाव्य के साथ-साथ मुक्तक रचनाएँ भी सामने आयीं। नाथों और सिद्धों द्वारा लिखित साहित्य की अगुवाई सरहपा और कण्हपा जैसे सिद्धों / रचनाकारों ने की। इसमें केवल उपदेश ही नहीं है अपितु सामाजिक कुरीतियों, विडम्बनाओं, विरूप परम्पराओं पर करारा प्रहार किया गया है, साथ ही नयी सामाजिक व्यवस्था को स्वरूप देने का प्रयास भी लक्षित होता है। अपभ्रंश भाषा की लोकप्रियता इतनी व्यापक हुई कि बौद्धों, शैवों आदि परम्परा के संतों के साथ ही बारहवीं शती के अर्दुरहमान एवं विद्यापति आदि ने इसे अपनाकर इसकी व्यापकता और चमकाया। इतना ही नहीं यदि भारत में जनवादी का आधार खोजा जाए तो वह आधार इन्हीं रचनाओं में मिलेगा। भक्तिकालीन निर्गुण ज्ञानाश्रयी शाखा, जिसका प्रतिनिधित्व करते हैं – कबीर, रैदास, दादू, नानक, सुन्दरदास आदि और उनका भी आधार है यह नाथ सिद्ध साहित्य। ___अपभ्रंश के क्रान्तिदर्शी कवियों का मुख्य उद्देश्य सामान्यजन की भाषा में लोक जीवन की जीवन्त परम्पराओं को ग्रहण करते हुए जन सामान्य के मध्य अपने अभीष्ट सन्देशों का प्रचार करना था। अर्दुरहमान ने ‘सन्देशरासक' में स्वयं ही ग्रन्थ के सन्दर्भ में लिखा है कि उन्होंने यह रचना ऐसे समाज के लिए की है, जो न तो अधिक बुद्धिजनों का हो और न ही मूरों का - णहु रहइ बुहह कुकवित्त रेसु अवहत्तिणि अबुहह णहु पवेसुं। जिण मुक्ख ण पण्डिय मज्झयार तिह पुरउ पढिब्बउ सब्बवार॥ संदेश रा० १/२१॥ इस प्रकार स्पष्ट है कि इन साहित्यकारों के लिएअपभ्रंश साहित्य का हिन्दी के विकास में चाहे वह भाषिक हो या साहित्यिक, ऐतिहासिक महत्त्व रहा है। ९८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy