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22 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
जमालि को छोड़कर शेष निह्नवों के विषय में भी कही जा सकती है। पहले से चली आने वाली माथुरी व वलभी इन दो वाचनाओं में से देवर्द्धिगणी ने माथुरी वाचना को प्रधानता दी। साथ ही वलभी वाचना के पाठभेद को भी सुरक्षित रखा। इन दो वाचनाओं में संगति रखने का भी उन्होंने भरसक प्रयत्न किया एवं सबका समाधान कर माथुरी वाचना को प्रमुख स्थान दिया।
महाराज खारवेल :-महाराज खारवेल ने भी अपने समय में जैन प्रवचन के समुद्धार के लिए श्रमण - श्रमणियों एवं श्रावक-श्राविकाओं का बृहद् संघ एकत्र किया। खेद है कि इस सम्बन्ध में किसी भी जैन ग्रन्थ में कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं है। महाराज खारवेल ने कलिंगगत खंडगिरि व उदयगिरि पर एतद्विषयक जो विस्तृत लेख खुदवाया है उसमें इस सम्बन्ध में स्पष्ट उल्लेख है। यह लेख पूरा प्राकृत में है। इसमें कलिंग में भगवान् ऋषभदेव के मंदिर की स्थापना एवं अन्य अनेक घटनाओं का उल्लेख है। वर्तमान में उपलब्ध "हिमवंत थेरावली' नामक प्राकृत संस्कृत-मिश्रित पट्टावली में महाराज खारवेल के विषय में स्पष्ट उल्लेख है कि उन्होंने प्रवचन का उद्धार किया।
आचारांग के शब्द :- उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए आचारांग के कर्तव्य का विचार करने पर यह स्पष्ट प्रतीत होगा कि इसमें आशय तो भगवान् महावीर का ही है। रही बात शब्दों की तो हमारे सामने जो शब्द हैं वे किसके हैं? इसका उत्तर इतना सरल नहीं है। या तो ये शब्द सुधर्मास्वामी के हैं या जम्बूस्वामी के है या उनके बाद होने वाले किसी सुविहित गीतार्थ के हैं। फिर भी इतना निश्चित है कि ये शब्द इतने पैने हैं कि सुनते ही सीधे हदय में घुस जाते हैं। इससे मालूम होता है कि ये किसी असाधारण अनुभवात्मक आध्यात्मिक पराकाष्ठा पर पहुंचे हुए पुरूष के हदय में से निकले हुए है एवं सुनने वाले ने भी इन्हें उसी निष्ठा से सुरक्षित रखा है। अतः इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि ये शब्द सुधर्मास्वामी की वाचना का अनुसरण करने वाले हैं। सम्भव है इनमें सुधर्मा के खुद के ही शब्दों का प्रतिबिम्ब हो। यह भी असम्भव नहीं कि इन प्रतिबिम्बरूप शब्दों में से अमुक शब्द भगवान् महावीर के खुद के शब्दों के प्रतिबिम्ब के रूप में हों, अमुक शब्द
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