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________________ 16 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा पद्यात्मक अंश :- आचारांग प्रथमश्रुतस्कन्ध के विमोह नामक अष्टम अध्ययन का सम्पूर्ण आठवाँ उद्देशक पद्यमय है। उपधानश्रुत नामक सम्पूर्ण नवम अध्ययन भी पद्यमय है यह बिल्कुल स्पष्ट है। इसके अतिरिक्त द्वितीय अध्ययन लोकविजय, तृतीय अध्ययन शीतोष्णीय एवं षष्ठ अध्ययन धूत में कुछ पद्य बिल्कुल स्पष्ट है। इन पद्यों के अतिरिक्त आचारांग में ऐसे अनेक पद्य और हैं जो मुद्रित प्रतियों में गद्य के रूप में छपे हुए है। चूर्णिकार कहीं-कहीं."ग़ाहा" (गाथा) शब्द द्वारा मूल के पद्यभाग का निर्देश करते है किन्तु वृत्तिकार ने तो शायद ही ऐसा कहीं किया हो। आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के सम्पादक श्री शुब्रिग ने अपने संस्करण में समस्त पद्यों में स्पष्ट पृथक्करण किया है एवं उनके छंदों पर भी जर्मन भाषा में पर्याप्त प्रकाश डाला है तथा बताया गया है कि इनमें आर्या, जगती, त्रिष्टुभ, वैतालीय, श्लोक आदि का प्रयोग हुआ है। साथ ही बौद्ध पिटकग्रन्थ सुत्तनिपात के पद्यों के साथ आचारांग प्रथमश्रुतस्कन्ध के पद्यों की तुलना भी की है। आश्चर्य है कि शीलांक से लेकर दीपिकाकार तक के प्राचीन व अर्वाचीन वृत्तिकारों का ध्यान आचारांग के पद्य भाग के पृथक्करण की ओर नहीं गया। वर्तमान भारतीय संशोधकों, संपादकों एवं अनुवादकों का ध्यान भी इस ओर न जा सका, यह खेद का विषय है। आचाराग्ररूप द्वितीय श्रुतस्कन्ध की प्रथम दो चूलिकाएँ पूरी गद्य में है। तृतीय चूलिका में दो - चार जगह पद्य का प्रयोग भी दृष्टिगोचर होता है। इसमें महावीर की सम्पति के दान के सम्बन्ध में उपलब्ध वर्णन छः आर्याओं में है। महावीर द्वारा दीक्षाशिविका में बैठ कर ज्ञातखण्ड वन की ओर किये गये प्रस्थान का वर्णन भी ग्यारह आर्याओं में है। भगवान जिस समय सामायिक चारित्र अंगीकार करने के लिए प्रतिज्ञावचन का उच्चारण करते हैं उस समय उपस्थित जन-समूह इसप्रकार शान्त हो जाता है मानो वह चित्रलिखित हो। इस दृश्य का वर्णन भी दो आर्याओं में है। आगे पाँच महाव्रतों की भावनाओं का वर्णन करते समय अपरिग्रह व्रत की भावना के वर्णन में पाँच अनुष्टुभों का प्रयोग किया गया है। इसप्रकार भावना नामक तृतीय चूलिका में कुल चौबीस पद्य हैं। शेष सम्पूर्ण अंश पद्य में है। विमुक्ति नामक चतुर्थ चूलिका पूरी पद्यमय है। इसमें कुल ग्यारह पद्य हैं जो उपजाति जैसे किसी छन्द में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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