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294 : अंग साहित्य मनन और मीमांसा
16 भावनाएँ एवं तप का वर्णन और चन्द्र, सूर्य के ग्रहण तथा ग्रह-नक्षत्रों के प्रभाव, शकुन और उनके शुभाशुभफल का वर्णन था और इस पूर्व की पद संख्या 26 करोड़ थी। बारहवें प्राणायुपूर्व में आयु 1 करोड़ 56 लाख थी । दिगम्बर दृष्टि से इस पूर्व में कायचिकित्सा आदि अष्टांग आयुर्वेद, भूतिकर्म, जांगुलि, प्रक्रम, साधक प्रभृति आयुर्वेद के भेद, इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना आदि प्राण, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु के भेद-प्रभेद, दस प्राण, द्रव्य, द्रव्यों के उपकार और अपकार आदि का वर्णन किया गया था और इसकी पद संख्या 13 करोड़ थी । तेरहवें क्रियाविशालपूर्व में संगीतशास्त्र, छन्द, अलंकार, पुरूषों की 72 कलाएँ, स्त्रियों की 64 कलाएँ, 84 प्रकार के शिल्प, विज्ञान, गर्भ अवधारण आदि क्रियाएँ, सम्यग्दर्शन, मुनिवन्दन, नित्य-नियम एवं आध्यात्मिक चिंतन आदि लौकिक व लोकोत्तर सभी क्रियाओं का विस्तार से विश्लेषण था। श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्पराएँ इस पूर्व की पदसंख्या 9 करोड मानती हैं। चौदहवें लोक बिन्दुसारपूर्व में लौकिक और पारलौकिक सभी प्रकार की विद्याओं का सम्पूर्ण रूप से ज्ञान प्राप्त कराने वाली सर्वाक्षर सन्निपातादि विशिष्ट लब्धियों का वर्णन था । जैसे अक्षर पर बिन्दु वैसे ही ज्ञान का सर्वोत्तम सार होने से इसे लोकबिन्दुसार या त्रिलोकबिन्दुसार की संज्ञा से भी अभिहित किया जाता था। श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं की मान्यता के अनुसार इस पूर्व की पदसंख्या 121⁄2 करोड़ थी।
चौदह पूर्वो की वस्तु अर्थात् ग्रन्थ परिच्छेद की संख्या क्रमशः 10, 14, 8, 18, 12, 2, 16, 30, 20, 15, 12, 13, 30 और 25 थी ।' ग्रन्थ परिच्छेद के अतिरिक्त आदि के चार पूर्वी में क्रमशः 4, 12, 8, और 10 चूलिकाएँ थी। शेष 10 पूर्वी में चूलिकाएँ नहीं थीं। जैसे पर्वत का शिखर पर्वत के अन्य भाग से उन्नत होता है वैसे चूलिकाओं का भी स्थान था।'
दृष्टिवाद का चतुर्थ विभाग अनुयोग था। उसके मूल प्रथमानुयोग और गंडिकानुयोग ये दो भेद थे। प्रथम मूल प्रथमनुयोग में अरिहंतों के पंचकल्याणक का सविस्तृत विवरण था । द्वितीय गंडिकानुयोग में कुलकर, चक्रवर्ती, बलदेव आदि महापुरूषों का चरित्र था। यह विभाग ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत ही महत्वूपर्ण था।
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