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अंगग्रन्थों का अंतरंग परिचय : आचारांग
- पं. बेचरदास दोशी अंगों के बाह्य परिचय में अंगग्रन्थों की शैली, भाषा, प्रकरण-क्रम तथा विषय-विवेचन की चर्चा की गई। अंतरंग परिचय में निम्नोक्त पहलुओं पर प्रकाश डाला जाएगा :1. अचेलक व सचेलक दोनों परम्पराओं के ग्रन्थों में निर्दिष्ट अंगों के
विषयों का उल्लेख व उनकी वर्तमान विषयों के साथ तुलना । 2. अंगों के मुख्य नामों तथा उनके अध्ययनों के नामों की चर्चा। ___ पाठान्तरों, वाचनाभेदों तथा छन्दों के विषय में निर्देश। ___ अंगों में उपलब्ध उपोद्घात द्वारा उनके कर्तृव्य का विचार। ___ अंगों में आने वाले कुछ आलापकों की चूर्णि, वृत्ति इत्यादि के अनुसार
तुलनात्मक चर्चा। 6. अंगों में आने वाले अन्यमतसम्बन्धी उल्लेखों की चर्चा। 7. अंगों में आने वाले विशेष प्रकार के वर्णन, विशेष नाम, नगर इत्यादि
के नाम तथा समाजिक एवं ऐतिहासिक उल्लेख। ____. अंगों में प्रयुक्त मुख्य-मुख्य शब्दों के विषय में निर्देश। ...' अचेलंक परम्परा के राजवार्तिक, धवला, जयधवला, गोम्मटसार, अंगपण्णत्ति आदि ग्रन्थों में बताया है कि आचारांग' में मनशुद्धि, वचनशुद्धि, कायशुद्धि, भिक्षाशुद्धि, ईर्याशुद्धि, उत्सर्गशुद्धि, शयनासनशुद्धि तथा विनयशुद्धि - इन आठ प्रकार की शुद्धियों का विधान है।
. *जैन साहित्य का बृहद इतिहास, भाग -1, पं. बेचरदास दोशी, प्रका. पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, द्वि सं वर्ष 1989 से साभार उद्धृत
-सम्पादक
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