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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 261 सुदर्शन, यमलिक, वलिक, किष्कम्बल और पातालम्बष्ठ पुत्र। यदि हम स्थानांग में उल्लिखित अन्तकृद्दशा के दस अध्ययनों से इनकी तुलना करते हैं तो इसके यमलिक
और वलिक ऐसे दो नाम हैं, जो स्थानांग के उल्लेख से भिन्न हैं। वहाँ इनके स्थान पर जमाली, भयाली (भगाली) ऐसे दो अध्ययनों का उल्लेख है। पुनः चिल्वक का उल्लेख तत्त्वार्थ वार्तिककार ने नहीं किया है उसके स्थान पर पाल और अम्बष्ठपुत्र ऐसे दो अलग-अलग नाम मान लिये हैं। यदि हम इसकी प्रामाणिकता की चर्चा में उतरें तो स्थानांग का विवरण हमें सर्वाधिक प्रामाणिक लगता है।
स्थानांग में अन्तकृद्दशा के जो दस अध्याय बताये गये हैं उनमें नमि नामक अध्याय वर्तमान में उत्तराध्ययनसूत्र में उपलब्ध है। यद्यपि यह कहना कठिन है कि स्थानांग में उल्लिखित "नमि" नामक अध्ययन की विषयवस्तु अभिन्न थी या भिन्न थी। नमि का उल्लेख सूत्रकृतांग में भी उपलब्ध होता है। वहां पाराशर, रामपुत्त आदि प्राचीन ऋषियों के साथ उनके नाम का भी उल्लेख हुआ है। स्थानांग में उल्लिखित द्वितीय "मातंग" नामक अध्ययन ऋषिभाषित के 23वें मातंग नामक अध्ययन के रुप में आज उपलब्ध है। यद्यपि विषयवस्तु की समरुपता के संबंध में यहाँ भी कुछ कह पाना कठिन है। सौमिल नामक तृतीय अध्ययन का नाम साम्य ऋषिभाषित के 42वें सोम नामक अध्याय के साथ देखा जा सकता है। रामपुत्त नामक चतुर्थ अध्ययन भी ऋषिभाषित के तेईसवें अध्ययन के रुप में उल्लिखित है। समवायांग के अनुसार द्विगृद्धिदशा के एक अध्ययन का नाम भी रामपुत्त था। यह भी संभव है कि अन्तकृत्दशा इसिभासियाइं और द्विगृद्धिदशा के रामपुत्त नामक अध्ययन की विषयवस्तु भिन्न हो, चाहे व्यक्ति वही हो। सूत्रकृतांगकार ने रामपुत्त का उल्लेख अर्हत् प्रवचन में एक सम्मानित ऋषि के रुप में किया है। रामपुत्त का उल्लेख पालि त्रिपिटक साहित्य में हमें विस्तार से मिलता है। स्थानांग में उल्लिखित अन्तकृद्दशा का पाचवाँ अध्ययन सुदर्शन है। वर्तमान अन्तकृद्दशा में छठे वर्ग के दसवें अध्ययन का नाम सुदर्शन है। स्थानांग के अनुसार अन्तकृद्दशा का छठा अध्ययन जमाली है। अन्तकृद्दशा में सुदर्शन का विस्तृत उल्लेख अर्जुन मालाकार के अ६ ययन में भी है। जमाली का उल्लेख हमें भगवती सूत्र में भी उपलब्ध होता है। यद्यपि
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