________________
प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 251
ब्राह्मणों ने राजकोप के भय से उन्हें भोजन, आवास आदि प्रदान नहीं किया हो। विवश होकर नन्दी ग्राम से बाहर बौद्ध विहार में उन्हें रूकना पड़ा हो और वहाँ के बौद्ध भिक्षुओं ने उन्हें स्नेह प्रदान किया हो, जिससे उनके अन्तर्मानस में बौद्ध धर्म के प्रति सहज अनुराग जाग्रत हुआ हो इसलिए जैन धर्म के उपासक होने के साथ बुद्ध के प्रति भी उसके मन में स्नेह रहा हो और इसी कारण उन्होंने बुद्ध से धार्मिक चर्चाएँ की हो।68
प्रस्तुत अंग में श्रेणिक के पुत्रों की चर्चा है। अनुत्तरविमान में उत्पन्न होने वाले 33 मुनियों में 23 श्रेणिक के ही पुत्र थे। इनमें 20 धारिणी देवी से, 2 चेलना से और 1 नन्दा देवी से उत्पन्न था। 10 मुनि काकंदी के भद्रा सार्थवाही के पुत्र थे।
दूसरा वर्णन काकंदी के जीतशत्रु राजा का आया है। जैन साहित्य के कथाग्रंथों में जीतशत्रु राजा का पर्याप्त उल्लेख है। जीतशत्रु का नाम निम्न नगरों के राजा के रुप में आया है :
1. वाणिज्यग्राम 2 चम्पानगरी 3. उज्जयिनी
सर्वतोभद्र नगर 5. मिथिला नगरी 6. पांचाल देश 7. आमलकल्पा नगरी 8. सावत्थी (श्रावस्ती) 9. वाराणसी
10. आलंभिया 11. पोलासपुर।
इनके साथ में प्रायः धारिणी रानी का नाम आता है। इस प्रकार के विवरण से यह पता चलता है कि जीतशत्रु कोई व्यक्ति विशेष न होकर आलंकारिक नाम रहा हो। जीतशत्रु का शाब्दिक अर्थ होता है शत्रुओं को जीतनेवाला।
दुनियाँ की लगभग सभी परम्पराओं में कहानियों के प्रारम्भ में एक आदर्श वाक्य के रुप में कथन प्राप्त हैं। महाभारत आदि ग्रंथों में यह "एकदा नैमिष्याराण्ये" बहुत से जातकों के पहले ही "अतीते वाराणसियं बहमदत्ते रज्जं करिन्ते' आरब्ब
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org