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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 249
तीस मील पर और नूनखार स्टेशन से दो मील पर कहीं चिन्हित किया जाता है। काकंदी जीतशत्रु राजा की राजधानी थी, यह धन्य कुमार की जन्मभूमि थी तथा यहाँ का सहस्राम्रवन नामक उद्यान उसकी दीक्षाभूमि थी। भगवान महावीर का समवसरण यहाँ भी लगा था। राजगृह प्राचीन मगध साम्राज्य की राजधानी थी। यह पाँच पर्वतों से घिरी हुई है। यह भारत का सुन्दर, समृद्ध और वैभवशाली नगर था। यहाँ भगवान के 14 वर्षावास तथा दो सौ से अधिक समवसरण हुए। यहाँ बुद्ध ने भी वर्षावास किये थे। इसका नाम गिरिवज्र भी था। वर्तमान में यह राजगिरी नाम से जाना जाता है। प्राचीन काल में यह क्षितिप्रतिष्ठित नाम से प्रतिष्ठित था। इसके जल जाने पर सम्राट श्रेणिक के पिता प्रसेनजित ने इसे राजगृह नाम से बसाया था। वाणिज्यग्राम भगवान महावीर की जन्मभूमि के पास का एक नगर था। वर्तमान में यह बनिया ग्राम के नाम से जाना जाता है। उपासकदशासूत्र में उसका वर्णन आया है। साकेत कोशल की राजधानी थी। इतिहासज्ञों के अनुसार यह वर्तमान अयोध्या के पास ही कहीं होनी चाहिए। हस्तिनापुर भारत के प्रसिद्ध प्राचीन नगरों में एक था। महाभारत काल में यह कुरुदेश का एक सुन्दर एवं मुख्य नगर था। भारत के प्राचीन साहित्य में इसके हस्तिनी, हस्तिनपुर, हस्तिनापुर, गजपुर आदि नाम उपलब्ध होते हैं। वर्तमान में यह मेरठ से 22 मील पूर्वोत्तर और बिजनोर से दक्षिण-पश्चिम के कोण में गंगा नदी के दक्षिण-किनारे पर स्थित है। - तत्कालीन राजाओं में मगध सम्राट श्रेणिक और काकन्दी के राजा जीतशत्रु का नामोल्लेख मिलता था। श्रेणिक का वर्णन जैन, बौद्ध और वैदिक तीनों साहित्य में प्रचुर मात्रा में प्राप्त होता है। श्रेणिक का दूसरा नाम बिम्बिसार भी है। भागवत पुराण के अनुसार वह शिशुनागवंशीय कुल में उत्पन्न हुआ। महाकवि अश्वघोष ने 'जातस्य हर्यगकुले विशाले'' कहकर उसका कुल हर्यगकुल कहा है। आचार्य - हरिभद्र ने उनका कुल याहिक माना है। रायचौधरी ने हर्यगकुल को नागवंश माना है। बौद्ध साहित्य में इस कुल का नाम शिशुनागवंश पाया जाता है। पंडित गेगर
और भण्डारकर ने सिलोन के पाली वंशानुक्रम के अनुसार बिम्बिसार और शिशुनागवंश को पृथक बतलाया है।' डॉ. काशी प्रसाद ने श्रेणिक के पूर्वजों का
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