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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 235
इन तेरह राजकुमारों के नाम देकर जालिकुमार के वर्णन के समान होने का संकेत कर दिया गया है।
तृतीय वर्ग में दस अध्ययन हैं :- धन्यकुमार, सुनक्षत्र, ऋषिदास, पल्लक, रामपुत्र, चन्द्रिक, पृष्टिमातृक, पेढालपुत्र, पोष्टिल्ल तथा वेहल्ल। इनमें धन्य कुमार का वर्णन विस्तार से तथा शेष का संक्षेप में संकेत रुप ही है। इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि ये सभी तैंतीस महान आत्माएँ इस मानव का जन्म आयुष्य पूर्ण करके कौन से अनुत्तर विमान में जन्म ग्रहण करेंगे तथा फिर कहां पर मनुष्य जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होंगे।
प्रस्तुत अंग के प्रथम वर्ग का सातवाँ अध्ययन लष्टदन्त राजकुमार है और द्वितीय वर्ग का तीसरा अध्ययन भी लष्टदन्त कुमार ही है। दोनों की माता धारिणी
और पिता श्रेणिक सम्राट हैं। संभव है कि लष्टदन्त नामक दो राजकुमार रहे हों या श्रेणिक की बहुत सी रानियों में धारिणी नाम की दो पत्नियाँ हों तथा दोनों के पुत्र का नाम लष्टदन्त रहा हो, यह भी संभव है। तीसरा मत भाषा संबंधी है। प्राकृत के एक शब्द के संस्कृत में कई उच्चारण होते हैं जैसे प्राकृत "कय" का संस्कृत में कज, कच या कृत तथा कइ का कपि, कवि आदि। हो सकता है कि एक का नाम लष्टदन्त तथा दूसरे का नाम राष्ट्रदन्त रहा हो तथा प्राकृत में र और ल में अभेद के कारण
दोनों लष्टदन्त ही हो गया हो।।8 .. प्रस्तुत अंग में इन सभी भव्य जीवों के माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलोक
तथा परलोक की सिद्धि, भोग, त्याग, प्रव्रज्या एवं उसकी पर्याय, श्रुत का अभ्यास, तप, उपधान, प्रतिमा (विशेष प्रकार का तप), उत्सर्ग, संलेखना, अन्तिम समय का पादोपगमन (संथारा) आदि भक्त-प्रत्याख्यान, अनुत्तरविमान में जन्म, वहां से फिर श्रेष्ठ कुल में जन्म, बोधि-प्राप्ति तथा अन्त-क्रिया आदि का वर्णन किया गया है। इनमें से 23 राजकुमार श्रेणिक सम्राट के तथा 10 भद्रासार्थवाही के पुत्र थे।
प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन में जालिकुमार की कथा है। कथा की पूर्वपीठिका के रुप में आर्य सुधर्मा का राजगृह नगरी में आगमन, धर्मदेशना सुनने के लिए
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