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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 223
3 कृष्ण और कृष्ण की आठ पत्नियों का आख्यान- सम्यक्त्वकौमुदी
की कथाओं का स्त्रोत है। जम्बूस्वामी की आठ पत्नियाँ एवं उनको सम्यक्त्व प्राप्ति की कथाएँ भी इन्ही बीजों से अंकुरित हुई है। कथानकों के बीजभाव काव्य और कथाओं के विकास में उपादान रुप में व्यवहत हुए हैं। एक प्रकार से उत्तरवर्ती साहित्य के विकास के लिए इन्हें "जर्मिनल आडिया' कहा जा सकता है। द्वारिका नगरी के विध्वंस का आख्यान- जिसका विकास परवर्ती
साहित्य में खूब हुआ है। 6. ललित गोषियों (मित्र मण्डलियों) के अनेक रूप- अर्जुन माली के
आख्यान से प्रकट हैं। प्राचीन मान्यताओं और अन्धविश्वासों का प्रतिपादन यक्षपूजा, मनुष्य
के शरीर में यक्ष का प्रवेश आदि के द्वारा किया है। 8. अहिंसक के समक्ष हिंसावृत्ति का काफूर होना और अहिंसा-वृत्ति में
परिणत होना- अर्जुन लौह मुदगर से नगरवासियों का विध्वंस करता है किन्तु भगवान महावीर के समक्ष जाकर वह नतमस्तक हो जाता है
और प्रवज्या ग्रहण कर लेता है। नगर, पर्वत-रैवतक, आयतन-सुरप्रिय, यक्षायतन आदि का वर्णन
काव्यग्रंथों के लिए उपकरण बना। 10. देवकी के पुत्र गजसुकुमार के दीक्षित हो जाने पर सोमिल ने
ध्यानास्थित दशा में उसे जला दिया, अत्यन्त वेदना होने पर भी वह शांत भाव से कष्ट सहन करता रहा, यह आख्यान साहित्य निर्माताओं का इतना प्रिय हुआ, जिससे "गजसुकुमार" नामक स्वतन्त्र काव्य
ग्रंथ लिखे गये। इस प्रकार अन्तगडदशासूत्र अंग आगमों में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। इस श्रुतांग के आख्यानों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता हैं। आदि के पाँच
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