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________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 221 पर्युषण में अन्तकृत्द्दशांग सूत्र का वाचना क्यों? : दिगम्बर परम्परा में पर्युषण काल में तत्त्वार्थसूत्र के वाचन की परम्परा है। ऐसा कहा जाता है कि राजा श्रेणिक के शासन काल में चम्पानगरी के पूर्णभद्र उद्यान में सुधर्मा स्वामी ने जम्बूस्वामी को अतगड़दशासूत्र का अध्ययन कराया था वह काल पर्युषण काल नहीं था और शास्त्रों में भी पर्युषण काल में ही इसकी वाचना का विधान प्राप्त नहीं होता परन्तु पर्युषण काल में ही इसकी वाचना की परम्परा विद्यमान है। पर्युषण के अवसर पर कब से इसकी वाचना की परम्परा प्रारंभ हुई, यह भी एक शोध का विषय है, परन्तु ऐसा लगता है कि 15वीं शती के पश्चात् अर्थात् लोकाशाह के पश्चात् इसके वाचन की परम्परा प्रारंभ हुई होगी। चूंकि एक ओर इसमें महाराजा श्रेणिक तथा श्रीकृष्ण-वासुदेव की महारानियों द्वारा विशिष्ट तपश्चर्याओं के द्वारा मुक्तावस्था का वर्णन है तो दूसरी ओर गजसुकुमार और अतिमुक्तक कुमार जैसे श्रमणों का तेजस्वी व्यक्तित्व वर्णित है और तीसरी ओर सेठ सुदर्शन, अर्जुनमाली आदि के आख्यानों का मार्मिक वर्णन है, जो सम्पूर्ण जैन संस्कृति के लिए अनुकरणीय एवं आदर्श हैं। अतः पर्युषण के पावन पर्व पर स्थानकवासी परम्परा में इस आगम के वाचन की परिपाटी विद्यमान है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज में कल्पसूत्र के वांचन की परम्परा है। अंगसूत्रों में "अन्तकृत्दशा" आठवाँ अंग आगम है यह आठ वर्गों में बँटा हुआ है और पर्युषण के दिन भी आठ ही होते हैं। इसी दृष्टिकोण को सामने रखकर इसके वाचन की परिपाटी पर्युषण के दिनों में हुई होगी। वैसे इसका · वाचन किसी भी दिन किया जा सकता है। अंतकृत्दशांग सूत्र की वृत्तियाँ एवं अनुवाद :- अंतकृत्द्दशांग सूत्र पर संस्कृत में दो वृत्तियां प्राप्त होती हैं आचार्य अभयदेव और आचार्य घासीलाल जी म सा. की। छः हिन्दी अनुवाद प्राप्त होते हैं। तीन-चार गुजराती अनुवाद भी प्रकाशित हुए हैं। इस तरह इस आगम के करीब तेरह संस्करण प्राप्त होते हैं। एक अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है। सामाजिक एवं सांस्कृतिक वैशिष्ट्य :- अन्तगड़दशासूत्र में काकंदी, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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