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________________ अन्तगड़दशासूत्र का समीक्षात्मक अध्ययन - मानमल कुदाल प्रत्येक धर्म परम्परा में धर्म ग्रंथों का आदरणीय स्थान होता है। जैन परम्परा में आगम साहित्य उनके प्रामाणिक एवं आधारभूत ग्रंथ माने गये हैं। जैन आगम साहित्य अंग, उपांग, छेद, मूल, प्रकीर्णक आदि वर्गों में विभाजित है। यह विभागीकरण हमें सर्वप्रथम विधिमार्गप्रपा (आचार्य जिनप्रभ 13वीं शताब्दि) में प्राप्त होता है। अन्य आगमों के वर्गीकरण में "अंतकृतद्शांग' का उल्लेख अंग प्रविष्ट आगमों में आठवें स्थान पर हुआ है। आगम साहित्य में साधु-साध्वियों के अध्ययन-विषयक जितने उल्लेख प्राप्त होते हैं, वे सब अंगों और पूर्वो से संबंधित हैं और वे सब हमें "अन्तकृतद्शांग'' में भी प्राप्त होते हैं जैसे :- (क) सामायिक आदि ग्यारह अंगों को पढने वाले : 1. अन्तगड, प्रथम वर्ग में भ अरिष्टनेमि के शिष्य गौतम के विषय में प्राप्त होता है :"सामाइयमाइयाइ एक्कारसअंगाइं अहिज्जइ" अन्तगड, पंचम वर्ग, प्रथम अध्ययन में भ अरिष्टनेमि की शिष्या पद्मावती के विषय में प्राप्त होता है :"सामाइयमाइयाइ एक्कारसअंगाई अहिज्जइ" अन्तगड, अष्टम वर्ग, प्रथम, अध्ययन में भगवान महावीर की शिष्या काली के विषय में प्राप्त होता है : "सामाइयमाइयाइ एक्कारसअंगाइं अहिज्जइ" 4. अन्तगड, षष्ठ वर्ग, 15वें अध्ययन में भगवान महावीर के शिष्य अतिमुक्तककुमार के विषय में प्राप्त होता है : "सामाइयमाइयाइ एक्कारसअंगाई अहिज्जइ" (ख) बारह अंगों को पढ़ने वाले :- अन्तगड, चतुर्थ वर्ग, प्रथम अध्ययन 2 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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