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________________ 154 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा इस प्रथम सूत्र में अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, परमेष्ठी सूचक हैं, इन्हें परमपद में स्थित होने के कारण परमेष्ठी कहा गया है। यह अनादि मंत्र है, इसका प्रथम प्रयोग सूत्र की निर्विघ्न समाधि के लिए किया गया है। "नमो बंभीए लिवीए" पंच पदों के बाद ब्राह्मी लिपि के लिए नमन किया गया है, जो सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक लिपि है। सर्वप्रथम जो कुछ भी कथन किया जाता है, वह सर्वज्ञ का कथन अर्थ रूप में होता है। इसके अनन्तर अर्हत प्रभु के प्रमुख गणधर उन्हें सूत्रबद्ध करते हैं। कौनसी लिपि, लिपि होती है, यह निश्चित नहीं परन्तु अक्षर समूह का नाम लिपि कहलाती है। अतः उन अक्षरों से निर्मित पदों के अनुसार "नमो बंभीए लिवीए'' ऐसा पद देकर अक्षर स्थापना को महत्व दिया है। "नमो सुयस्स" श्रुत को नमन। यह भी महत्वपूर्ण है क्योंकि श्रुत, शास्त्र, आगम, सिद्धान्त आदि जो कुछ भी हमारे सामने उपस्थित हैं, वह अर्हत प्रभु के परमज्ञान से उत्पन्न है, जिसमें किसी प्रकार का विरोध नहीं है। श्रुत में भी अंग और अंग बाह्य ये दो भेद प्रसिद्ध हैं। अंग ग्रंथं में आचारांग आदि बारह सूत्र ग्रंथ आते हैं, जिन्हें द्वादशांगी कहा गया। उन द्वादशांगी में व्याख्याप्रज्ञप्ति नामक पंचम अंग का महत्वपूर्ण स्थान है। व्याख्याप्रज्ञप्ति की वर्णन पद्धति :- इस अंग आगम में एक श्रुतस्कंध है, एक सौ एक अध्ययन हैं, 10,000 उपदेशन काल हैं, 10000 समुद्देशन काल हैं, उन सभी में 36,000 प्रश्न हैं तथा उनमें उनके उत्तर भी हैं, इसके पदों की संख्या 2,28,000 है। व्याख्याप्रज्ञप्ति के अध्ययन का नाम शतक है। इन शतकों की वर्णन पद्धति के प्रारंभ में पृथक-पृथक सूचियाँ दी गई हैं। जैसे:रायगिह चलण, दुक्खे कंखपओसे य पगति पुढवीओ। जांवते नेरइए बाले गुरुए य चलणाओ। ... राजगृह नगर, चलन, दुख, कांक्षाप्रदोष, कर्म प्रकृति, पृथ्वी यावत नैर्यक, बाल, गुरुक और चलन, प्रथम शतक के इन दस उद्देशकों में राजगृह नगर के विषय में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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