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________________ 132 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा निश्चित रुप से इसमें पुनरावृत्त विषयों की संख्या कम है। परन्तु इसमें रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकों आदि का विवरण एक से तैंतीस समवाय पर्यन्त सभी समवायों में प्राप्त होता है। पुनरावृत्त पदार्थों की दृष्टि से यह दृष्टान्त सर्वाधिक उल्लेखनीय है। समवायांग में रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नारकों, शर्करापृथ्वी के कुछ नारकों, असुरकुमारदेवों और भवनवासियों, असंख्यात वर्ष आयुष्कों, गर्भोपक्रान्तिक संज्ञी मनुष्यों, वाणव्यन्तर देवों, ज्योतिष्कदेवों, सौधर्मकल्पदेवों, ईशानकल्प देवों की स्थिति प्रथम समवाय में यथाप्रसंग एक कल्प और एक सागरोपम कही गयी है। यही विवरण 33वें समवाय तक वर्णित है। प्रत्येक समवाय में इन जीवों की स्थिति समवाय की संख्या के अनुरुप बतायी गयी है। यद्यपि जीवों के नाम कहीं पृथक्-पृथक् हैं, कहीं कुछ जीवों को समाविष्ट कर लिया गया है तो कहीं कुछ जीवों को छोड़ दिया गया है। यह सम्पूर्ण विवरण लगभग 71 सूत्रों या सूत्रांशों में (सूत्रों में पदों की संख्या समान नहीं) वर्णित हैं। तैंतीसवें समवाय के दो सूत्रों के विवरण की उपस्थिति में अन्य सभी 69 सूत्रों के विवरण अनावश्यक से प्रतीत होते हैं। ___पुनरावृत्ति की दृष्टि से स्थानांग के सभी स्थानों- एक से दस तक के अन्त में "पुद्गलपद" के अन्तर्गत पुग़ल संबंधी विवरण प्रतिपादित है। प्रथम स्थान में एकप्रदेशावगाढ, एक समय की स्थिति, एक गुण, एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और एक स्पर्श वाले पुद्गल अनन्त कहे गये हैं। इसी प्रकार द्विप्रदेशी आदि से लेकर दस प्रदेशी आदि पुद्गल अनन्त कहे गये हैं। एक से लेकर दस स्थानों में यह विवरण 27 सूत्रों में प्रतिपादित है, जबकि अन्तिम पांच सूत्रों की उपस्थिति में शेष 22 सूत्र अनावश्यक प्रतीत होते हैं। यद्यपि उक्त दोनों उदाहरण भाव में पुनरावृत्ति के ही निदर्शक हैं परन्तु प्रत्येक समवाय और स्थान में संख्या परिवर्तन से इन्हें पुनरावृत्ति मानने में आपत्ति हो सकती है। इन दोनों उदाहरणों के अतिरिक्त स्थानांग में बहुत से उदाहरण हैं जिनकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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