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________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 129 * (31) और आवश्यक (अ4) में भी यही वर्णन है। स्थानांग (3/3/182) में उपवास करने वाले श्रमण को कितने प्रकार के धोवन पानी लेना कल्पता है, यह वर्णन मिलता है। यह वर्णन समवायांग (3/3) प्रश्न व्याकरण (5वाँ संवर द्वार), उत्तराध्ययन (31), और आवश्यक सूत्र (अ.4) में प्रकारान्तर से मिलता है। स्थानांग (3/4/214) में विविध दृष्टियों से ऋद्धि के तीन प्रकार बताये गये हैं। इसी प्रकार का वर्णन समवायांग (3/4), प्रश्न व्याकरण (5वाँ संवर द्वार) में भी मिलता है। स्थानांग (3/3/226) में अभिजित, श्रवण, अश्विनी, भरणी, मृगशिर, पुष्प, ज्येष्ठा के तीन-तीन तारे कहे गये हैं। यही वर्णन समवायांग (3/6), और सूर्य प्रज्ञप्ति (10/9/42) में भी प्राप्त है। स्थानांग (4/1/247) में चार ध्यान का स्वरूप और प्रत्येक ध्यान के लक्षण तथा आलम्बन बताये गये हैं, वैसा ही वर्णन समवायांग (4/2), भगवती (25/7/282) और औपपातिक (सूत्र30) में भी मिलता है। - निदेशक पार्श्वनाथ विद्यापीठ आई टी आई रोड़, वाराणसी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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