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________________ 118 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा होना सिद्ध होता है। वस्तुतः स्थानांग में संख्या के क्रम से बौद्धों के अंगुत्तर निकाय की भांति विभिन्न विषयों का प्रतिपादन किया गया है। यथा एक-एक वस्तु में क्या है? दो-दो वस्तुयें क्या हैं? आदि। इस क्रम में एक से लेकर दस तक की वस्तुओं की चर्चा की गयी है। समवायांग सूत्र में 12 अंगों का जो परिचय उपलब्ध होता है, उसमें स्पष्ट कहा गया है कि एकविध, द्विविध यावत् दसविध जीव, पुद्गल और लोक स्थिति का वर्णन इस ग्रन्थ में है। __अन्य अंग सूत्रों से स्थानांग के स्वरुप की तुलना करते हुए हम यहं पाते हैं कि जहाँ अन्य अंग सूत्रों में मुमुक्षु जीवों के लिए विधि- निषेध रुप से आचार नियमों का प्रतिपादन है अथवा साधक आत्माओं के जीवन विवरण हैं अथवा संवादों के रुप में उपदेश हैं, वहाँ स्थानांग और समवायांग में ऐसा कुछ भी नहीं है। स्थानांग और समवायांग दोनों के अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि ये ग्रन्थ संग्रहात्मक कोष के रुप में लिखे गये हैं। अन्य अंगों की अपेक्षा इनका विषय निरुपण सर्वथा भिन्न प्रकार का है। स्मृति में सुविधा हो और वह चिरकाल तक स्थिर रह सके इसलिये संख्या के क्रम से विभिन्न आगमों की जानकारी के लिये आवश्यक ऐसी विषय वस्तु को इसमें संग्रहित कर दिया गया है। इन अंगों की विषय निरुपण शैली से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि जब अन्य सभी अंग बन गये होंगे तब स्मृति तथा धारणा की सरलता की दृष्टि से अथवा विषयों के खोज की सुगमता की दृष्टि से इन दोनों अंगों की योजना की गयी होगी तथा इन्हें विशेष प्रतिष्ठा प्रदान करने हेतु अंगों में समाविष्ट कर लिया गया होगा। स्थानांगसूत्र में दस अध्याय और सात सौ तेरासी सूत्र हैं। इसके दसवें अध्याय में दस-दस अध्याय वाले दस दशाग्रन्थों का उल्लेख है, किन्तु उनमें कहीं भी स्थानांग का दशा के रुप में उल्लेख नहीं है, इससे ऐसा लगता है कि यह ग्रन्थ दस दशाओं के पश्चात ही निर्मित हुआ होगा। __ स्थानांग का परिचय हमें समवायांग और नन्दीसूत्र में मिलता है। समवायांग के अनुसार स्थानांग में स्वसिद्धान्त, परसिद्धान्त और स्वपर सिद्धान्त का, जीव, अजीव और जीवाजीव का, लोक-अलोक और लोकालोक का, द्रव्य, गुण और पर्यायों का तथा पर्वत, नदी, समुद्र, देवों के प्रकार, पुरुषों के विभिन्न प्रकार, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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