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82 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
यह जानना एक दिलचस्पी का विषय हो सकता है कि आज के विख्यात मनोविश्लेषक एरिक फ्रॉम ने हिंसा के जो अनेक प्रारुप बताए हैं उनमें भूतकाल प्रेरित (प्रतिशोधात्मक) हिंसा और वर्तमान प्रेरित (प्रतिक्रियात्मक) हिंसा का स्पष्ट उल्लेख हुआ है। उन्होंने हिंसा का एक प्रकार, क्रीड़ात्मक हिंसा भी बताया है लेकिन क्रीड़ात्मक हिंसा से उनका तात्पर्य मनोरंजन या प्रमोद के लिए हिंसा से न होकर खेलते समय (जूडो-कराटे, मुक्केबाजी इत्यादि) में जो हिंसा कभी-कभी हो जाती है उससे है। वे ऐसी क्रीड़ात्मक हिंसा को बुरा नहीं मानते। उसे वे जीवनोन्मुख मानते हैं। फिर भी ऐसी हिंसा वस्तुतः तो निरर्थक ही है। इस प्रकार हमें देखते है कि आचारांग को यथाथ्र जीवन ये जीने की प्रेरणा देता है।
0 उपनिदेशक पार्श्वनाथ विद्यापीठ आई टी आई रोड़, वाराणसी
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