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________________ आशीर्वचन सुहिणोभवंतुजीवा! अनन्तोपकारी देवाधिदेव चरमतीर्थाधिपति श्रमण भगवान महावीर देव ने सकल जीवराशि के हितार्थ अद्भुत वचनयोग के माध्यम से करूणा बरसाई। प्रभु की करूणा धारा का सक्रिय अनुभव करने वाले शास्त्रकार परम महर्षियों ने अनुपम शास्त्र सर्जन किया। जिनागम, जिनवचन पर आधारित असंख्य प्रकरण ग्रंथ जैन संघ के सद्भाग्य से वर्तमान से मौजूद हैं। 'पंचसूत्र' एक ऐसा ही अद्वितीय ग्रंथरत्न है, जो कलिकाल में कल्पवृक्ष समान है। इस सूत्र का परिशीलन अपूर्व कर्म निर्जरा का साधन है, (अणुप्पेह माणस्स, सिढिली भवंति, परिहायंति, खिज्जंति, असुह-कम्माणु-बंधा)। (सूत्र-१) अशुभकर्म के अनुबंध भी समाप्त हो जाते हैं, ऐसा है इस ग्रंथरत्न का अद्भुत प्रभावा याकिनी महत्तरासूनू सूरिपुरंदर श्रीमद् हरिभदाचार्य ने इस सूत्र पर टीका बनाई, जिसके आधारित अनेक विवेचन वर्तमान में उपलब्ध हैं। . सौम्य स्वाभावी, स्वाध्याय, प्रेमी, विदुषी साध्वीवर्या प्रियरंजना श्री जी म.सा. ने इस 'पंचसूत्र' पर गहरी अनुप्रेक्षा करके जो चिंतन, मनन, परिशीलन किया, वह आज भव्य जीवों के कर-कमलों में उपहार स्वरूप प्रस्तुत हो रहा है, यह आनंद की बात है। इस विवेचना के माध्यम से सभी भव्य जीवों का संसार सीमित हो जाए और शीघ्र मोक्ष प्राप्ति हो, यही शुभाभिलाषा....। मिगसर सुदी १५, सैटेलाईट, अहमदाबाद युवा हृदय सम्राट् पू.आ.वि. हेमरत्नसूरि म.सा. के शिष्य -पं. विरागरत्न विजय गणी 07 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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