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________________ परमात्मा बनने की कला 1. जीव अनादिकाल से है। हे मेरे अन्तर्यामि प्रभु ! आपने निम्नलिखित छः बातें बतलाई हैं (37) अरिहंतोपदेश 2. जीव का संसार अनादिकाल से है। 3. जीव के कर्म के साथ संयोग भी अनादिकाल से हैं, अनादिकाल से चलता आ रहा यह संसार..। 4. संसार स्वयं 'दुःखरूप' है। 5. भोगने के बाद फल में दु:खदायक होने से 'दुःखफलक' है। 6. और इन दुःखों की परम्परा चालू रहने से 'दुःखानुबन्धी' भी है। (ब) अरिहंतोपदेश विश्व वत्सल विभु! आपने ऐसे दुःख रूप संसार का नाश करने के निम्नलिखित उपाय बताये हैंदुःखस्वरूप, दुःखफलक और दुःखानुबन्धी संसार का नाश 'शुद्धधर्म' द्वारा होता है। शुद्धधर्म की प्राप्ति 'पापकर्मों के विनाश' से होती है। पाप कर्मों का विनाश ' तथाभव्यत्व' के परिपाक से होता है। Jain Education International तथाभव्यत्व- मोक्षगमन की योग्यतावाला अनादि-पारिणामिक भाव । जैसे- घास में केरी रखने से जल्दी पकती है, वैसे ही जीव की योग्यता स्वरूप तथाभव्यत्व भी अभी के उपायों से जल्दी तैयार होता है। जीव का काल पकते ही शुभफलों की हारमाला शुरू हो जाती है। 40 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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