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________________ परमात्मा बनने की कला आद्य मंगल है, इस एक राग के जाने से बाकी सभी दोष अपने आप नष्ट हो जाते हैं। द्वेष से भी ज्यादा बलवान दोष 'राग' है। राग का नाश दसवें गुणस्थानक के अन्त में होता है, द्वेष का नाश नवमें गुणस्थानक में ही हो जाता है। इससे ज्ञात होता है कि द्वेष नष्ट होने पर जितनी आत्मविशुद्धि होती है, उससे ज्यादा चित्त के अध्यवसाय की अधिक विशुद्धि हो तो ही राग नष्ट होता है। रागबड़ाबलवान राग दोष, द्वेष दोष से भी ज्यादा प्रबल दोष है। यह इस प्रकार है1. राग का आयुष्य द्वेष से भी ज्यादा बड़ा है। 2. द्वेष भूलना सरल है पर राग भूलना कठिन है। 3. द्वेष करना पड़ता है, राग सहजता से हो जाता है। 4. द्वेष से होने वाला नुकसान दिखाई देता है, परन्तु राग से जो नुकसान होता है वह समझ में नहीं आता। 5. द्वेष मत करो, ऐसा सभी कहते हैं, परन्तु राग मत करो, ऐसा जगत् में कोई नहीं - कहता, यह तो वीतराग का शासन कहता है। 6. द्वेष दुर्ध्यान कराता है। यह अनुभव होता है; परन्तु राग दुर्ध्यान कराता है, ऐसा नहीं लगता है। 7. द्वेष करने वाला अपने प्रति द्वेषी बनकर रहे, यह अच्छा नहीं लगता। परन्तु राग करने ... वाला अपने प्रति अखण्ड रागी बना रहे, ऐसा चाहता है; उसका रागीपना छूटे यह भी - अच्छा नहीं लगता। 8. द्वेष दुर्गुण है, यह फिर भी मालूम होता है; परन्तु राग आत्मा का स्वभाव नहीं है, बल्कि दुर्गुण ही है, यह ज्ञात नहीं होता। 9. द्वेष लम्बे समय तक रहे तो अच्छा नहीं लगता है, और राग लम्बे समय तक रहे तो भी अच्छा लगता है। 10. आठों कर्मों की जड़ 'मोहनीय कर्म' और मोहनीय की जड़ 'राग' है। मोहनीय की . प्रकृति के मूल में राग है। तीव्र कोटि का राग अर्थात् अनंतानुबंधी का राग जब तक नहीं जाएगा, तब तक मिथ्यात्व नहीं जाता है। राग के दो प्रकार हैं- प्रशस्त राग और अप्रशस्त राग। प्रशस्त राग कर्म-बन्धन नहीं करता है, कर्म बन्धन को छुड़ाने वाला है। प्रशस्त Jain Education International For Perso31 & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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