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________________ परमात्मा बनने की कला आद्य मंगल अर्थात् देवेन्द्र, परमात्मा की पूजा, भक्ति करते हैं। स्मरण रहे, उनमें हम से कई गुणा ज्यादा शक्ति व सामर्थ्य होता है फिर भी इन्द्रदेव परमात्मा की पूजा में तत्पर रहते हैं। करोड़ों देवता सेवा में हाजिर खड़े रहते हैं। इसलिए यहाँ सामान्य केवलज्ञानी न लेकर जिनेश्वरदेव को लिया गया है एवं देवेन्द्रों से पूजित', यह विशेषण रखा है। 4. यथास्थित वस्तुवादी- परम सत्य यानि यथार्थ को कहने वाले तीन विशेषणों से अलंकृत अरिहन्त परमात्मा धर्म-तीर्थ की स्थापना करके, मोक्षमार्ग के तत्त्वों का उपदेश फरमाते हैं, तत्पश्चात् ही मोक्ष पधारते हैं। यही सूचित करने के लिए यथास्थितवादी यह चौथा विशेषण कहा गया है। कहते हैं- चौदहपूर्वी श्रुतकेवली भगवन्त भी यथास्थित वस्तुवादी होते हैं, परन्तु सूत्रकार को श्रुतकेवली भगवन्तों को यहाँ नहीं लेना है। पूर्व के तीन विशेषणों को जोड़कर यहाँ यथास्थित वस्तुवादी श्री जिनेश्वरदेव को ही लिया गया है। सूत्र में अरूहंताण शब्द है। उसका अर्थ - जिनमें अब कर्मबन्ध का कोई भी कारण नहीं, जिनमें कर्म के अंकुर उदित नहीं होंगे। श्री तीर्थंकर प्रभु के चार विशेषण में चार महाअतिशय 1. अपायापगमातिशय - 'अपाय' अर्थात् दोष, 'अपगम' यानि नाश करने वाले अर्थात् जो सर्व राग-द्वेषादि दोषों से रहित हो गये, वे वीतरागा 'अपाय' का मतलब उपद्रव भी होता है। वीतराग प्रभु अपायापगम वाले हैं। तीर्थंकर नाम कर्म के उदय होते ही प्रभु विहार मार्ग के सवा सौ योजन में मारीमरकी इत्यादि उपद्रवों का निवारण करने वाले हैं। वीतराग विशेषण से अपायापगम अतिशय सूचित होता है। 2. ज्ञानातिशय - सर्वज्ञ विशेषण से ही ज्ञानातिशय अर्थात् सर्वद्रव्य, सर्व पर्याय को जानना, देखना; इसी सर्वज्ञता से ज्ञानातिशय जाना जाता है। 3. पूजातिशय - देवेन्द्रों से पूजित इस विशेषण से पूजातिशय को बताया गया है। वैसे भी परमात्मा इस अतिशय से विश्व के सर्व जीवों से पूजित कहलाते हैं। नर-नारी, देव-दानव, नारकी, तिर्यंच सभी परमात्मा की पूजा, भक्ति करते हैं। वचनातिशय - यथास्थित वस्तुवादी विशेषण से 35 अतिशयों से युक्त वाणी को वचनातिशय का निर्देश किया है। चार महा-अतिशय के स्वामी प्रभु तीन लोक के गुरु हैं। आत्महित का उपदेश फरमाने वाले ही सच्चे गुरु होते हैं। शुद्ध और सत्य धर्म के उपदेशक, संसार के त्यागी और वैरागी निग्रंथ मुनि के अतिरिक्त अन्य कौन हो सकते हैं? अरिहन्त परमात्मा हमारे सर्वश्रेष्ठ गुरु हैं। आद्य गुरु हैं। . वीतराग शब्द से वीतद्वेष, वीतमोह भी समझ लेना है। राग सभी दोषों का राजा Jain Education International For Perso 30. Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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