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परमात्मा बनने की कला
आद्य मंगल
प्रथम सूत्र पापप्रतिघात-गुणबीजाधान
हे वीतराग परमात्मा! हे सर्वज्ञप्रभु! देवेन्द्र द्वारा पूजित प्रभु! यथार्थ को कहने वाले नाथ! हे तीन भुवन के जगद्गुरू! ऐसे उत्तम विशेषणों को धारण करने वाले हे अरिहन्त भगवन्त! आपको मेरा कोटि-कोटि प्रणाम हो।
पंचसूत्र की शुरूआत 'नमो' शब्द से होती है। पहला शब्द 'नमो वीयरागाणं', ग्रन्थ के मंगलाचरण के लिए है। शुभ कार्य की शुरूआत के लिए मंगल तो विशेष रूप से करना चाहिए, जिससे विघ्न दूर होता है और कार्य निराबाध रूप से सम्पन्न होता है। कहते हैं कि शुभ कार्य में विघ्न तो आते ही हैं, इसलिए यहाँ मंगल जरूरी है। अशुभ कार्य में विघ्न उत्पन्न हो तो अच्छा मानना चाहिए, जिससे अशुभ कार्य रूक जाएं। मंगल इष्ट देवता के स्मरण से या नमस्कार से होता है। जगत् में देवाधिदेव अरिहन्त वीतराग परमात्मा ही सर्वश्रेष्ठ इष्ट देव हैं। इन्हें किया गया नमस्कार सर्व विघ्नों का नाश करने वाला है। इसलिए अरिहंत परमात्मा को किया गया नमस्कार सबसे श्रेष्ठ (उत्तम) मंगल कहा जाता है। नमस्कार तीन प्रकार के होते हैं - इच्छायोग, शास्त्रयोग, सामर्थ्य योग। यहाँ इनको संक्षिप्त में बताया जा रहा है1. 'इच्छा योग' में अरिहन्त परमात्मा को नमन करने की केवल इच्छा होती है। विधि या
अविधि के ध्यान बिना मात्र नमस्कार किया जाता है। 2. 'शास्त्रयोग' में अरिहन्त परमात्मा को शास्त्र अनुसार सम्पूर्ण विधिपूर्वक नमस्कार
किया जाता है। 3. 'सामर्थ्य योग' में अरिहन्त परमात्मा को उनकी सम्पूर्ण आज्ञा का पालन करते हुए
नमस्कार किया जाता है। यह सामर्थ्य योग केवल ज्ञान के एकदम निकट है; अर्थात् केवलज्ञान आकर ही रहता है।
विशेषण युक्त नमस्कार एवं विशेषण रहित नमस्कार में केवल भावों में अंतर होता है। भावों की महत्ता के लिए यहाँ विशेषण का प्रयोग किया गया है। सूत्र में अरूहंताण भगवंताणं यह विशेष्य है। अरिहंत को अरूहन् और अर्हन् भी कहा जाता है, उनके अर्थ यहाँ बताये गये हैं। 1. अरिहंत - अरि+हंत; जिन्होंने राग-द्वेष रूपी शत्रुओं को नष्ट कर दिये हैं। 2. अरूहन् - रूह धातु का अर्थ उत्पन्न होना। अर्थात् जिनके कर्म फिर से उत्पन्न नहीं होंगे।
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