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________________ परमात्मा बनने की कला सुकृत अनुमोदना पंचसूत्र परिशिष्ट अचिंत-सत्ति-जुत्ता-हि-ते भगवंतो, वीअरागा, सव्वन्नू, परम-कल्लाणा, परम-कल्लाण-हेऊ सत्ताणं!!! मूढे अम्हि पावे-अणाइ-मोह-वासिए, अणभिन्ने, भावओ हिआ-हिआणं। *** अभिन्ने सिआ, अहिअ-निवित्ते सिआ, हिअ-पवित्ते सिआ, आराहगे सिआ, उचिअ-पडिवत्तीए, सव्व-सत्ताणं सहिअंति। इच्छामि सुकड़ इच्छामि सुकडं इच्छामि सुकडं *** एवमेअं, सम्म पढ-माणस्स, सुण-माणस्स, अणुप्पेह-माणस्स, सिढिलीभवंति, परिहायंति, खिज्जंति, असुह-कम्माणु-बंधा, निरणु-बंधे वा असुह-कम्मे, भग्ग-सामत्थे सुह-परिणामेणं, कडग-बद्ध विअ विसे-अप्प-फले सिआ, सुहा-वणिज्जे सिआ, अपुण-भावे सिआ। * * * तहा-आस-गलि-जंति परि-पोसि-ज्जंति, निम्म-विज्जति, सुह-कम्माणु-बंधा, साणुबंधं च सुहकम्म, पगिट्ट पगिट्ठ-भाव-ज्जिअं, नियम-फलयं,सुपउत्ते विव महागए, सुह-फले सिआ, सुहप-वत्तगे सिआ, परम-सुह-साहगे सिआ। अओ-अपडिबंध-मेअं, असुह-भाव-निरोहेणं, सुह-भाव-बीअंति, सुप्पणिहाणं-सम्मं पढिअव्वं, म्मं सोअव्वं सम्मं अणुप्पेहि-अव्वंति। *** नमो नमिअ-नमिआणं परम-गुरू-वीअरागाणं नमो सेस-नमुक्कारा-रिहाणं जयउ सव्वण्णु-सासणं परम संबोहीए सुहिणो भवंतु जीवा, सुहिणो भवंतु जीवा, सुहिणो भवंतु जीवा। Jain Education International 210 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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