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परमात्मा बनने की कला
सुकृत अनुमोदना सूर्य - आत्मा बादल - कर्मपटल-सहज मल
सूर्यप्रकाश - ज्ञानादिगुण सूर्य बादल से ढका हुआ है। आत्मा कर्मों से ढकी हुई है। घने बादल पतले हों, तब सूर्यप्रकाश सीधा बाहर नहीं आता है और बादल में छिद्र हो जाए तो सीधे सूर्यप्रकाश बाहर आता है। उसी प्रकार आत्मा के ऊपर से कर्म पतले होंगे, तब ज्ञानादि-क्षमादि गुण बाहर आते हैं। उसे शास्त्रीय भाषा में औदयिक भाव का प्रकाश कहा जाता है। क्योंकि यह प्रकाश कर्मपटल में से होकर आया है, और यही क्षमादिगुण कर्मपटल में छिद्र करके प्रकाश करे तो उसे क्षयोपशम भाव कहा जाता है। औदयिक भाव से हो रही प्रक्रिया में कोई चमड़ी उतारने के लिए आए तो भी क्षमा तो रहेंगी, ऐसा विशिष्ट प्रकाश दिखाता हो फिर भी उसका फल, मात्र देवलोक, मोक्षमार्ग में एक कदम भी नहीं। सहज मल में छिद्र नहीं हुआ। इस सहज मल में छोटा भी छिद्र होना ही मोक्षमार्ग है।
इस दृष्टान्त में इतना भेद है कि बादल में छिद्र होकर पुन: बन्द हो जाता है। जबकि सहज मल में एक बार छोटा-सा भी छिद्र होने के बाद कभी भी बन्द नहीं होता। बस यही सहज मल में जो छोटा-सा छिद्र होना ही मोक्षमार्ग है, और तब से ही पुण्य के अनुबथ की शुरूआत होती है।
- सहज मल-संसार के पदार्थों में ही सुख है, ऐसी गहरी मान्यता। - सहज मल में छिद्र- संसार के पदार्थों में जो सुख की गहरी मान्यता है, वह मंद
हो जाना। पुण्यकाअनुबन्धकब?
सुख संसार के पदार्थों में है, ऐसी बुद्धिवालों को पुण्य का अनुबन्ध नहीं होता। संसार खराब लगे, बाद में जो कुछ करने में आए, उसमें पुण्य का अनुबन्ध होता है। सहज मल का थोड़ा भी हास हुए बिना, जितना भी गुणों का प्रकटीकरण हो या फिर अरबों रुपये का दान हो या विशिष्ट शील का पालन हो, मासक्षमण के पारणे मासक्षमण हो या विशिष्ट कोटि का क्षमादि गुण हो, फिर भी पुण्य का अनुबन्ध नहीं होगा। केन्द्र स्थान में आत्मा
कहते हैं, कोई चमड़ी उतारे तो भी गुस्सा नहीं करना। यह किसी हद तक क्षमा कही जा सकती है। परन्तु ऐसी क्षमा भी निष्फल कहलाएगी, कारण आत्मा केन्द्र स्थान में न
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