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परमात्मा बनने की कला
सुकृत अनुमोदना अनुमोदना करने से इन अनुष्ठानों को करने जितना लाभ मिलता है।
_. अरिहंत भगवान के अनुष्ठान कौन-से हैं? श्रेष्ठ अप्रमत्त संयम, उग्रविहार, घोर तप, प्रचण्ड परिसह जय, भयंकर उपसर्गों में लोकोत्तर सहिष्णुता सहित दृढ़-हृदय से ध्यान, क्रूर कम से निर्दयरूप पीड़ित जगत् को तारक-धर्म का उपदेश; भव्य जीवों को चिन्तामणि से भी अधिक श्रुत-सम्यक् देशविरति और सर्वविरति का दान, संयम प्रेरणा... इत्यादि। अरिहंत प्रभु के एक से बढ़कर एक ऐसे कितने ही सर्वसुन्दर अनुष्ठान हैं। धन्य भाग्य! धन्य जीवन! धन्य प्रवृत्ति! ऐसे अनन्त जिनेश्वर देवों के अनन्त अनुष्ठानों की मैं पुलकित हृदय से अनुमोदना करता हूँ। अहो! कैसी इनके लोकोत्तर कार्य! अहो! मेरे जैसे दीन-दुःखी जगत् के भव्य जीवों के अनन्त उपकारी अनन्त अरिहंत प्रभु के अनन्त उत्तमोत्तम सुन्दर अनुष्ठान। अरे! इनमें से मैं एक भी अनुष्ठान का सही आचरण करने में समर्थ नहीं हूँ। फिर भी अहोभाग्य मेरे कि मुझे उत्तमोत्तम अनुष्ठान जानने-समझने को मिले हैं। ऐसी प्रमोद भावना मिली। मुझे इनकी अनुमोदना करने का लाभ मिला है। . यहाँ समझना है कि 'करण-करावाण और अनुमोदन, समान फल निपजायो रे' इस कथन के अनुसार धर्म-साधना के तीन रास्ते हैं। इनमें से यह तीसरा उपाय रूप बताया गया 'अनुमोदना' चार विशेषताओं से युक्त है- 1. भावपूर्ण हृदय 2. आत्मा को प्रमुदित करके 3. अपूर्वहर्ष और बहुमान सहित 4. इन् अनुष्ठानों को जीवन में उतारने का मनोरथा यहाँ अनुमोदना से अनुष्ठान का साक्षात् आचरण के समान लाभ क्यों नहीं मिलता है? अनुमोदन अर्थात् अनुसरण करने वाले का मोदन (आनन्द)। अनुष्ठान को अनुसरण करने का आनन्द। संयम-तप-तितिक्षा-धर्मोपदेश आदि अनुष्ठान के प्रतिपक्षी जो तत्त्व, असंयम, सुखशीलता, कषाय, पापोपदेश इत्यादि, इन पर से ध्यान हटाकर उन अनुष्ठानों के ऊपर आकर्षित और अभिलाषा रूप से मुग्ध होने वाले हृदय का निर्मल और प्रेरक आनन्दा आकर्षण अर्थात् अहो! ये कैसे उत्तम और आदरणीय हैं। ऐसा भव अभिलाषिता यानि ये मुझे कब मिलेगा? ऐसी कामना।
- अब दूसरे प्रकार में सर्व सिद्ध भगवान की सिद्धि अर्थात् अव्याबाध (अक्षय निरूपद्रव) स्थिति, अनन्त शाश्वत् सुख, अरूपिता, स्फटिकवत्, निष्कलक शुद्ध स्वरूप अनन्त ज्ञान-दर्शन इत्यादि की अनुमोदना करता हूँ। अहो! हमारी कहाँ अधम गति बारम्बार जन्म-मरण की रोग-शोक की, काम-क्रोध-लोभ की, हिंसादि पापों की, महा अज्ञान महा-मोह की उपद्रवमय अवस्था? और कहाँ सामने सिद्ध आत्मा की कितनी उत्तम अद्भुत अगम अवस्था।
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