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परमात्मा बनने की कला
दुष्कृत गरे दान-धर्म में श्रेष्ठ माने जाते हैं।
द्वारिका नगरी में स्थित दो वैद्यराज अत्यधिक आरम्भ समारम्भ पूर्वक जीवन जीते थे, किन्तु स्वभाव से दोनों एक दूसरे से एकदम विपरीत थे। एक सीधा, सरल, दूसरा अक्खड़ स्वभाव वाला। एकदा गाँव में साधु भगवंत अस्वस्थ हो गये। वैद्यराज को बुलाया गया। अक्खड़ स्वभावी वैद्य जी ने स्वास्थ्य देखकर उन्हें बताया कि आपको शहद के साथ यह दवा लेनी होगी। साधु भगवन्त ने कहा अभक्ष्य शहद का हम भक्षण नहीं करते हैं। अतः दूसरा उपाय बताइए। अक्खड़ वैद्य ने अक्खड़ता से कहा- 'दूसरा उपाय नहीं है। यदि ठीक होना है। तो यह दवा शहद से ही लेनी पड़ेगी अन्यथा मैं चलता हूँ।' यहाँ साधु भगवंत का अपमान कर उनकी अवज्ञा की। सातों क्षेत्र पूज्य कहे गये हैं। उनमें प्रथम साधु भगवन्त को. पूज्य कहा गया है। उनकी मानसिक रूप से की गई अवगणना भी भयंकर विपाक को भोगने वाला बना देती है। साधर्मिक बथु भी महान् होते हैं। उनकी भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि इन्हीं में से कोई तीर्थंकर का जीव है तो कोई गणधर का जीव हो सकता है। उनकी भी सेवा करनी चाहिए। जिनशासनस्लों कीखान
तीर्थ यात्रा का महत्व जानकर दो साधर्मिक बन्धुओं ने तीर्थ-यात्रा के लिए अपने गाँव से प्रस्थान किया। अनेक तीर्थों की यात्रा करते-करते दोनों एक ग्राम में पहुँचे। वहाँ भोजन की व्यवस्था प्रतिदिन चलती रहती थी, किन्तु आज पाकशाला जल्दी बन्द कर दी गयी थी। दोनों को भोजन नहीं मिला। वहाँ के साधर्मिक बन्धु ने केवल आज उनकी उपेक्षा की। आज जाने दीजिये, ये भोजन कहीं और कर लेंगे। वे दोनों बन्धु अन्य स्थान पर पहुंचे और वहीं अपने भोजन की व्यवस्था कर ली।
ग्राम में ज्ञानी गुरु भगवन्त का आगमन हुआ। गाँव के जैन बन्धु ने हाथ जोड़कर गुरु महाराज से कहा कि 'मेरे द्वारा कोई भूल-चूक हुई है तो फरमाइये।' गुरु महाराज ने कहा- 'तुम्हारे यहाँ से जो दो साधर्मिक बधु भोजन किए बिना ही चले गये हैं, उनमें से एक तीर्थंकर का जीव था, दूसरा गणधर का जीव था। जिसे दिया जाता है वह सुपात्र जितना श्रेष्ठ होता है, उतना भक्ति का फल भी श्रेष्ठ प्राप्त होता। तुम्हारे यहाँ प्रतिदिन साधर्मिकों को भोजन कराया जाता है, किन्तु कल तुमने उनकी उपेक्षा की। श्रेष्ठ फल प्राप्ति से वंचित रह गये। एक लाख श्रावकों को भोजन कराया जाये अथवा एक श्रेष्ठ आत्मा को भोजन कराया जाये, दोनों का समान फल प्राप्त होता है।' ___चतुर्विध संघ सबसे बड़ा पात्र है, क्योंकि यह रत्नों की खान है। इस संघ में
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