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________________ परमात्मा बनने की कला दुष्कृत ग कहते हैं आज लोगों को तीर्थंकर परमात्मा के प्रति राग होगा, परन्तु यदि गुरु भगवन्तों के प्रति तिरस्कार या द्वेष के भाव रखते हों तो उनका विपाक (फल) भयंकर कोटि का उदित होगा। परमात्मा के समक्ष गोशाला की पुकार गोशाला जब परमात्मा से कहता है कि हे वर्धमान ! मेरी तेजोलेश्या के द्वारा तुम जलकर भस्म नहीं हुए, परन्तु छः महीने के भीतर तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। परमात्मा को केवलज्ञान के पश्चात् उपसर्ग नहीं होते, परन्तु महावीर भगवान् को उपसर्ग आये। यह एक आश्चर्य हैं। परमात्मा महावीर ने कहा- हे गोशाला ! मेरा आयुष्य तो अभी बड़ा है परंतु तेरी तो सात दिन के पश्चात् मृत्यु है। परमात्मा पर फैंकी गई तेजोलेश्या परमात्मा को तीन प्रदक्षिणा देकर गोशाला के शरीर के भीतर प्रवेश कर गयी। वह सात दिन तक तड़पता है, जलन की पीड़ा सहन करता है किन्तु अन्तिम दिन उसे भीतर से अहसास होता है ये मेरे गुरु हैं। मैंने अपने ही गुरु को मारने के लिए तेजोलेश्या फेंकी; दो मुनि भगवन्तों को जला दिया । मैं कितना पापी, अधमी हूँ। मैं मरकर किस गति में जाऊँगा? अंतिम रात्रि में गोशाला को घोर पश्चाताप हुआ। हमने भी गोशाले जैसे पाप किये। अचरमावर्त्त काल में ऐसे पाप अनेक बार किए। इसलिए प्रभु के समक्ष हमेशा कहो- 'मुझ सम खल को नहीं स्वामी ।' खल यानि मूर्ख, लुच्चा । क्योंकि दूसरे लोग जगत् को ठगते हैं। मैने परमात्मा को, साधु भगवन्त को, साधर्मिकों को ठगा है। भगवान आपने मुझे निगोद से बाहर निकाला और मैंने आपका कहना ही नहीं माना। आपने आश्रवों का त्याग करने के लिए कहा और मैंने आश्रवों को बढ़ाया ही है। परमात्मा ने कहा- हिंसा, झूठ, चोरी आदि पाप करने योग्य नहीं हैं। इन पापों को करने से जीव नरक में जाता है। इतना जानने के पश्चात् भी मैंने इन पापों को नहीं छोड़ा। भगवान ने ब्रह्मचर्य पालन करने के लिए कहा किन्तु, मेरे मन-वचन-काया का कोई ठिकाना नहीं है। मैं घोर वासना की अग्नि में जलता रहा। कहते हैं दुनियाँ के सभी लुटेरों को खड़ा कर दिया जाए तो उनमें सर्वप्रथम नम्बर मेरा ही लगेगा। नहीं करने योग्य चिन्तन मैंने मन से किया। नहीं बोलने जैसे वचन मैने बोले, नहीं करने जैसा कार्य मैंने किया। कितने ही जीवों का विश्वासघात किया। छोटे से छोटा पाप भी भोगना पड़ता है। मैंने तो लाखों, करोड़ों अनगिनत पाप किए हैं। पापों से पिटारा भरा पड़ा है। मुझ पापी का क्या होगा ? मछली बनकर लाखों जीवों को खाया होगा। इससे सातवीं नरक में भयंकर भूख, प्यास, सर्दी, गर्मी आदि उपसर्गों को 33 Jain Education International 152 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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