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________________ परमात्मा बनने की कला चार शरण सिद्ध भगवान कीशरण हे सिद्ध भगवन्त! आप जन्म जरा मरण से रहित हैं। आपने कर्म रूपी कलंक को धो दिया है। आप सब पीड़ाओं से मुक्त हैं। आपने कैवल्यज्ञान और कैवल्यदर्शन को धारण किया है। आप सिद्ध शिला नाम की शाश्वत् नगरी के निवासी हैं। आपके सर्व कार्य संपन्न हो गये हैं। आप सर्वथा कृतकृत्य हैं। प्रकट प्रभावी सिद्ध भगवन्त! जीवनभर आप ही मेरे सच्चे शरण हैं। हलाहल कलियुग में चारों तरफ से घिरा हुआ मैं सच्चे हृदय से भावपूर्वक आपकी शरण स्वीकार करता हूँ। सिद्ध स्वरुपबोध निच्छिन्न सत्वदुक्खा, जाई-जरा-मरण बंधन विमुक्का। अव्वाबाहं सुक्खं, अणुहुँति सासयं सिद्धा॥ (औपपातिक सूत्र) चन्देसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा। सागरवर गम्भीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु॥ (आवश्यक सूत्र) .. सिद्ध भगवान् का स्वरूप बताते हुए शास्त्रों में कहा गया है- जिनके समस्त दुःख क्षय हो गये हैं, जिन्हें जन्म-जरा-मृत्यु और कर्म आदि का कोई भय नहीं, बन्धन नहीं। जो प्रतिक्षण अनन्त आनन्द और परम सुख का अनुभव कर रहे हैं, जो अविनाशी स्वरूप हैं, वे हैं सिद्ध भगवान्। जो हजारों चन्द्रमा से भी अधिक निर्मल और शांत हैं, हजारों सूर्यों से भी अधिक प्रकाशमान हैं और महासमुद्र से भी अधिक गम्भीर हैं, वे सिद्ध भगवान् हमें सिद्ध गति - चन्दसु निम्मलया, प्रदान करें। _ विशेषणों से युक्त सिद्ध प्रभु, जन्म-मरण रहित, कर्मकलंक से मुक्त, समस्त पीड़ा नष्ट हो गई जिनकी, केवल ज्ञान-दर्शन वाले, सिद्ध नगरी के वासी, अनुपम सुख सम्पन्न, सर्वथाकृतकृत्य, सिद्ध भगवन्त हमारे शरणभूत हैं। भावपूर्वक शरण 105 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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