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परमात्मा बनने की कला
हे अरिहंत भगवन्त !
आप तीनों लोक में सर्वश्रेष्ठ हैं।
आप सर्वोत्कृष्ट पुण्य के भण्डार हैं।.
आप राग द्वेष और मोह को जीत चुके हैं।
आप अचिन्त्य चिंतामणि रत्न के समान हैं।
अरिहंत भगवान् की शरण
आप इस संसार सागर से तारने के लिए जहाज स्वरूप हैं।
हे दया के सागर! हे कृपा के भण्डार! हे अनाथों के नाथ! हे अनंतानन्त अरिहंत भगवान्! जीवन भर आप ही मेरे एकमात्र शरण हैं। आधि, व्याधि और उपाधि से ग्रस्त इस संसार सागर में फंसा हुआ हूँ। मैं अनन्य और अकाम भाव से आपकी शरणागति को स्वीकार करता हूँ।
भगवान् परम त्रिलोकीनाथ, उत्कृष्ट पुण्य समूह वाले, रागद्वेष-मोह का क्षय कर दिया, अचिन्त्य चिंतामणि, भवसागर में जहाज रूप, एकान्त शरण करने योग्य, अरिहन्त देव हमारे शरणभूत हैं।
परमत्रिलोकी नाथ
चार शरण
सर्वप्रथम अरिहंत भगवन्तों की शरण स्वीकार करना है। इस सूत्र में अरिहंत प्रभु विशिष्ट विशेषण बताए गये हैं। उनके प्रति पूर्ण श्रद्धा और अतिशय आदर वाला बनना है। यह बात भूलनी नहीं है। तभी ये शरण स्वीकार करने में सफल बनेंगे। जीवनभर अरिहंत भगवन्तों का मुझे शरण हो । यह एक प्रकार की प्रतिज्ञा समान है। यदि सामान्य भावना रूप • अभिलाषा होती तो आगे भवान्तर के लिए भी की जा सकती थी, किन्तु जावज्जीव की मर्यादा न बँधती । मर्यादा बान्धी गई है तो भवान्तर में अज्ञानतावश कभी इस प्रतिज्ञा का खण्डन न हो जाए इस हेतु से । खण्डन का भय प्रतिज्ञा में होने का गिना गया है, पर अभिलाषा से नहीं। इसलिए शरण स्वीकारने वाले को यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि ये शरण इस जीवन के अन्त तक ही हैं। अब इनकी शरण छोड़ना नहीं और दूसरे की शरण स्वीकार करना नहीं। यहाँ जिसमें कर्म के अंकुर नहीं उगते, अष्ट-प्रतिहार्य की ऋद्धि से जो शोभित हैं, परम ऐश्वर्य रूप यश- ज्ञान धर्म वाले ऐसे अरिह-भु की शरण स्वीकारना है।
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प्रभु हमें इस लोक और परलोक की दुर्गति के भय से बचाते हैं। भविष्य में दीर्घ
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