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ताभ्यामपरा भूमयोऽवस्थिताः ।। 28 || सूत्रार्थ - भरत और ऐरावत के सिवा शेष भूमियाँ अवस्थित हैं ।। 28 ।।
तृतीय अध्याय
क्षेत्र का नाम
देवकुरु- उत्तर कुरु
हरि - रम्यक
हैमवत - हैरण्यवत
विदेह
अवस्थित भूमियों के काल
काल
प्रथम काल-उत्तम भोगभूमि
दूसरा काल-मध्यम भोगभूमि तीसरा काल- जघन्य भोगभूमि
चौथे काल की आदि
तीसरा काल तुल्य
तीसरा काल तुल्य
कुभोग भूमि-अंतद्वीपज
मानुषोत्तर पर्वत से स्वयंप्रभ
पर्वत तक असंख्यात द्वीप एवं समुद्र
अंत का आधा स्वयंभूरमण द्वीप, स्वयंभूरमण समुद्र एवं चार कोने देवगति
नरक गति
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भरत एवं ऐरावत के पाँच म्लेच्छ खण्ड एवं विद्याधरों की श्रेणियाँ
पंचम काल तुल्य
प्रथम काल तुल्य
छठा काल तुल्य
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चौथे काल के आदि से लगाकर उसी के अंत तक हानि - वृद्धि
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