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तृतीय अध्याय
नारका- नित्याशुभतरलेश्यापरिणामदेहवेदनाविक्रियाः ||3||
सूत्रार्थ नारकी निरन्तर अशुभतर लेश्या, परिणाम, देह, वेदना, और
विक्रियावाले
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परस्परोदीरितदुःखाः।।4।।
सूत्रार्थ - तथा वे परस्पर उत्पन्न किये गये दुःखवाले होते हैं || 4 ||
संक्लिष्टासुरोदीरितदुःखाश्च प्राक् चतुर्थ्याः ||5|| सूत्रार्थ - और चौथी भूमि से पहले तक वे संक्लिष्ट असुरों के द्वारा उत्पन्न किये गये दुःखवाले भी होते हैं ।। 5 ।।
नारकियों के दुःख
लेश्या परिणाम देह वेदना विक्रिया परस्पर देवकृत (क्षेत्र का (हुंडक (शीत, (अशुभ ( श्वान
अपृथक् की
अशुभ संस्थान, उष्ण, स्पर्श, रस कुधातुओं रोग, गंध, वर्ण) सहित) भूख,
प्यास
आदि)
*
द्रव्य (शरीर का रंग - अति कृष्ण )
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विक्रिया)
भाँति लड़ते हैं) लड़ाते हैं)
भाव
(परिणाम - 3 अशुभ)
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(असुर
कुमार देव
आपस में
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