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ज्ञानाज्ञानदर्शनलब्ध्यश्चतुस्त्रित्रिपञ्चभेदाः सम्यक्त्वचारित्रसंयमा
संयमाश्च ।। 5 ।।
सूत्रार्थ - क्षायोपशमिक भाव के अठारह भेद हैं- चार ज्ञान, तीन अज्ञान, तीन दर्शन, पाँच दानादि लब्धियाँ, सम्यक्त्व, चारित्र और
संयमासंयम ॥5॥
द्वितीय अध्याय
क्षायोपशमिक भाव
4 ज्ञान
3 कुज्ञान 3 दर्शन 5 लब्धि मतिज्ञान कुमतिज्ञान चक्षुदर्शन दान श्रुतज्ञान कुश्रुतज्ञान अचक्षुदर्शन लाभ अवधिज्ञान कुअवधिज्ञान अवधिदर्शन भोग | मन:पर्ययज्ञान
उपभोग
वीर्य
(ज्ञानावरण)
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सम्यक्त्व * चारित्र *संयमासंयम
वर्तमान
सदवस्थारूप
उदयाभावी क्षय (देशघातिरूप फल) उपशम (दबना)
(दर्शन ( चारित्र मोहनीय) मोहनीय)
(दर्शनावरण) ( अंतराय) (मोहनीय)
क्षयोपशम से
क्षयोपशम
सर्वघाति स्पर्द्धक (पूर्ण घात) देशघाति स्पर्द्धक ( आंशिक घात)
I
आगामी
उदय (फल देना)
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