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________________ 231 सम्मतियाँ) * पण्डित किशनचन्दजी जैन, अलवर ___ पुस्तक को कई बार बारीकी से पढ़ा। पढ़कर विदित होता है कि आपको इतनी छोटी उम्र में भी जैन तत्त्वज्ञान का कितना गहन अध्ययन है। आपने जो लिखा है कि नई पीढ़ी तालिकाओं एवं रेखाचित्रों के माध्यम से विषय-वस्तु को सरलता से शीघ्र ग्रहण कर लेती है।' मैं आपके इस विचार से शत-प्रतिशत सहमत हूँ। वैसे तो तत्त्वार्थ सूत्र पर अनेक महान आचार्य एवं विद्वानों द्वारा अनेक टीकाएँ छपी हुई मिलती हैं। लेकिन जो कमी उनमें थी, वह इस तत्त्वार्थ सूत्र की पुस्तक से पूरी हो जाती है। इसमें आपने कितनी मेहनत की है, यह इस पुस्तक के पढ़ने से भली-भाँति विदित होता है। आपने (पति-पत्नी) जो इतनी छोटी उम्र में अमेरिका के इतने बड़े पैकेज तथा ग्रीन कार्ड को भी छोड़कर निवृत्ति ली है, वह भी एक आदर्श है। आज के इस भौतिक युग में जहाँ रुपये की ही प्रधानता है, वहाँ उसको ठोकर मार दी। इससे विदित होता है कि आप दोनों अति निकट भव्य है तथा आपको इस त्याग का फल सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र की भी शीघ्रता से प्राप्ति होगी। .... आप दोनों जो तत्त्व-अभ्यास में लगे हुए हैं। साथ ही अपना ही नहीं, अन्य तत्त्वपिपासुओं को भी पथ प्रदर्शन में सहयोगी बन रहे हैं। यह भी एक परमं हर्ष का विषय है। - किशनचन्द जैन * ब्रह्मचारी संदीपजी 'सरल', अनेकान्त ज्ञान मंदिर, शोध संस्थान, बीना (म.प्र.) अभी तक तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ पर अनेकों टीकाएँ तैयार हुई हैं, प्रकाशन भी . . अनेक स्थलों से हुआ है, किन्तु यह प्रकाशन अपने आप में हटकर है। रेखाचित्र एवं तालिकाओं के साथ आपने जो विवेचना की है, स्वाध्यायी के लिए अत्यंत उपादेय है। अध्येता बिना किसी के आलम्बन से स्वयं विषय को हृदयंगम कर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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