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________________ 229 (परिशिष्ट-2) पाठांतर REER TERRBERISINESTEE A1 171 पृष्ठ । प्रथम पाठ द्वितीय पाठ चरमोत्तम शब्द के अर्थउसी भव से मोक्ष जाने वाले तीर्थंकर (सर्वार्थसिद्धि-अध्याय 2, (तत्त्वार्थ वृत्ति-अध्याय 2, सूत्र 53) सूत्र 53) 61 अंत का आधा स्वयंभूरमणं द्वीप एवं स्वयंभूरमण समुद्र में कौन-सा काल हैदुःषम (पंचम) काल तुल्य चतुर्थ काल (त्रिलोकसार-गाथा 884) | (वृहद्-द्रव्यसंग्रह-गाथा 35 |श्री ब्रह्मदेव कृत संस्कृत टीका) शुक्र-महाशुक्र (9-10) स्वर्ग में भाव लेश्यापद्म और शुक्ल पद्म (सर्वार्थसिद्धि -अध्याय 4,(गोम्मटसार जीवकाण्ड-गाथा सूत्र 22) 534-535) लौकान्तिक देवों की कुल संख्या407820 407806 (त्रिलोकसार-गाथा 537-538) (राजवार्तिक- अध्याय 4, सूत्र 25) 198 | चार प्रकार का आहारखाद्य, पेय, लेह्य, स्वाद्य अन्न, पान, खाद्य, लेह्य (रत्नकरण्ड श्रावकाचार -श्लोक 142) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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