SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 227 के तराजू-बाँट खोटे रखना, 6. स्वर्ण-मणि-रत्नादि खोटे को सच्चे में मिला देना, 7. खोटी गवाही देना, 8. कपट की अधिकता करना, 9. दूसरों की निन्दा करना, 10. झूठ वचन बोलना, 11. दूसरे का धन ले लेना, 12. महा आरम्भ और महा परिग्रह के भाव करना, 13. अपने सुन्दर रूप-उज्ज्वल भेष का गर्व करना, 14. अपने आभूषण, रूप आदि का मद करना, 15. कठोर-निंद्य-असत्य प्रलाप करना, 16. क्रोध और ढीठता के वचन कहना, 17. अपना सौभाग्य चाहना, 18. अन्य जीवों को कौतुहल उत्पन्न कराना, 19. आभूषण-वस्त्रादि पहनने में बहुत शौक - अनुराग रखना, 20. जिनमन्दिर के चन्दन-गन्ध-पुष्पमालादि-धूपादि की चोरी करना, 21. हँसी उड़ाना, 22. ईंट पकाने का कार्य करना, 23. दावाग्नि लगाने का कार्य करना, 24. प्रतिमा का नाश तथा मन्दिर का नाश करना, 25. मनुष्य-तिर्यंचों के सोने-बैठने के स्थान को मल-मूत्रादि से बिगाड़ देना, 26. बाग-बगीचा-वन का विनाश करना, 27. क्रोध-मान-माया-लोभ की तीव्रता रखना, 28. पापकर्म से आजीविका करना। नीच गोत्रकर्म के आस्रव के विशेष कारण 1. जाति, कुल, बल, रूप, ज्ञान, आज्ञा, ऐश्वर्य और तप का मद करना, 2. दूसरों की अवज्ञा करना, 3. दूसरों की हँसी करना, 4. अपवाद करने का स्वभाव रखना, 5. धर्मात्मा पुरुषों की निन्दा करना, 6. अपनी उच्चता दिखाना, 7. दूसरों के यश को बिगाड़ देना, 8. अपनी असत्य कीर्ति प्रकट करना, 9. गुरुओं का तिरस्कार करना, 10. गुरुओं के दोष प्रकट करना, 11. गुरुओं का स्थान बिगाड़ना - अपमान करना, 12. गुरुओं को कष्ट उत्पन्न कराना, अवज्ञा करना, गुणों को लोपना, 13. गुरुओं को हाथ नहीं जोड़ना, स्तुति नहीं करना, गुण प्रकाशित नहीं करना, उन्हें देखकर खड़े नहीं होना, 14. तीर्थंकर आदि की आज्ञा का लोप करना। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy