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नाम पुलाक
प्रति- दूसरों के
सेवना दबाववश
(विरा -
धना )
तीर्थ
भावलिंग
द्रव्यलिंग
बिकश
5 व्रत व
रात्रि भोजन की चाह
कुशील प्रतिसेवना कषाय
1. उपकरण उत्तर प्रतिसेवना प्रतिसेवना प्रतिसेवना
त्याग व्रत 2. शरीर
में से 1 की विराधना
लेश्या 3 शुभ
(भाव)
नवम अध्याय
बकुशउपकरण
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बकुश - शरीर
संस्कार की
चाह
w
गुणों की का विराधना अभाव
सभी निग्रंथ सब तीर्थंकरों के तीर्थ में होते हैं।
* सभी भावलिंगी होते हैं।
* सभी यथाजात रूप वाले होते हैं।
* शरीर की ऊँचाई आदि प्रवृत्ति में अंतर होता है।
कापोत, शुक्ल
6
6
पीत,
उत्कृष्ट 12वें स्वर्ग 15 -16वें 15 - 16वें
उपपाद - 18 सागर स्वर्ग
स्वर्ग
(जन्म) आयु
जघन्य
पद्म, शुक्ल
सर्वार्थ
सिद्धि
का
का
अभाव अभाव
211
सर्वार्थ
सिद्धि
V
|22 सागर 22 सागर 33 सागर 33 सागर
सभी का पहले स्वर्ग - 2 सागर आयु
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शुक्ल /
श्या
उपपाद
संयम कषाय कषाय कषाय कषाय कषाय कषाय
स्थान सहित सहित
सहित सहित रहित रहित
रहित
मोक्ष ही
जाते हैं
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