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नवम अध्याय
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सम्यग्दृष्टिश्रावकविरतानन्तवियोजकदर्शनमोहक्षपकोपशमकोपशान्त
मोहक्षपकक्षीणमोहजिनाः क्रमशोऽसंख्येयगुणनिर्जराः।।45।। सूत्रार्थ - सम्यग्दृष्टि, श्रावक, विरत, अनन्तानुबन्धिवियोजक, दर्शनमोह क्षपक,
उपशमक, उपशान्तमोह, क्षपक, क्षीणमोह और जिन - ये क्रम से
असंख्यगुण निर्जरा वाले होते हैं।।45।। गुणश्रेणी निर्जरा में विशेषता के 10 स्थान
(एक ही जीव की अपेक्षा)
InHESARKOND
स्वरूप
स्वामा नजरा (गुणस्थान
अपेक्षा) सातिशय मिथ्याष्टिप्रथमोपशम सम्यक्त्व के पहले आगे-2 करण लब्धि में
के स्थान 1. सम्यग्दृष्टि अव्रती श्रावक 2. श्रावक व्रती श्रावक
असंख्यात 3. विरत •
गुणी 4. अनंतानुबंधी अनंतानुबंधीको अप्रत्याख्यानावरण | वियोजक आदि रूप विसंयोजित करने वाला 4-7 होती है। 5. दर्शनमोह क्षपकदर्शनमोह का क्षय करनेवाला 4-7 सामान्य
निर्जरा
6. उपशामक
चारित्र मोह दबाने वाला
उपशमश्रेणी सबका 8-10 अंतर्मुहूर्त 11 काल क्षपकश्रेणी होने पर
7. उपशांत कषाय चारित्र मोह दबने पर 8. क्षपक चारित्र मोह क्षय करने वाला
8-10
9. क्षीण मोह चारित्र मोह क्षय होने पर 12- 10. सयोगी जिन घातिया कर्मों का क्षय करने के 13
बाद योग सहित
आगे-2 संख्यात
गुणाहीन
काल है।
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