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________________ 196 . नवम अध्याय परिहार विशद्धि चारित्र निम्न सभी विशेषताओं से युक्त जीव के ही परिहार विशुद्धि चारित्र हो सकता है:* 30 वर्ष तक सुखी रहने के बाद * दीक्षा लेकर * 8 वर्ष तीर्थंकर के पाद मूल में रहकर * नवमें प्रत्याख्यान नामक पूर्व का अध्ययन करने वाला जीव। . इस चारित्र के धारक जीव नियम से | * 2 कोस प्रतिदिन विहार करते हैं। परंतु * 3 संध्या काल में विहार नहीं करते * वर्षा काल में विहार का निषेध नहीं है। . सामायिकों में अन्तर । सामायिक गुणस्थान व स्वरूप । 1.सामायिक शिक्षा व्रत दूसरी प्रतिमा, पंचम गुणस्थान | अभ्यास रूप 2. सामायिक प्रतिमा तीसरी प्रतिमा, पंचम गुणस्थान व्रतरूप 3. सामायिक आवश्यक | छठा-सातवाँ गुणस्थान नियमरूप 4. सामायिक चारित्र छठे से नौवाँ गुणस्थान यमरूप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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