SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवम अध्याय 194 . ज्ञानावरणे प्रज्ञाज्ञाने।।13।। सूत्रार्थ - ज्ञानावरण के सद्भाव में प्रज्ञा और अज्ञान परीषह होते हैं।।13।। - दर्शनमोहान्तराययोरदर्शनालाभौ।।14।। सूत्रार्थ - दर्शनमोह और अन्तराय के सद्भाव में क्रम से अदर्शन और अलाभ ___ परीषह होते हैं।।14॥ चारित्रमोहे नाग्न्यारतिस्त्रीनिषद्याक्रोशयाचनासत्कार पुरस्काराः।।15॥ सूत्रार्थ - चारित्रमोह के सद्भाव में नाग्न्य, अरति, स्त्री, निषद्या, आक्रोश; याचना ___ और सत्कार-पुरस्कार परीषह होते हैं।।15।। वेदनीये शेषाः।।16॥ सूत्रार्थ - बाकी के सब परीषह वेदनीय के सद्भाव में होते हैं।।16।। किस कर्म के उदय से कौन-सा परीषह होता है *प्रज्ञा *अज्ञान ज्ञानावरण(2) अंतराय(1) वर्शन(1) चारित्र (1) वेदनीय(11) मोहनीय मोहनीय * अलाभ * अदर्शन .* नग्नता * क्षुधा * अरति * तृषा * स्त्री * शीत *निषद्या * उष्ण * आक्रोश *दंशमशक *याचना * सत्कार- * शय्या पुरस्कार *वध * रोग * तृणस्पर्श * मल . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy