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________________ 163 163 164 164 165 166 10 166 11 167 11 168 | 11 169 169 दर्शन के भेद दर्शन - ज्ञान का व्यापार 163 मनः पर्ययज्ञान की उत्पत्ति का क्रम वेदनीय कर्म के भेद आत्मा का सुख गुण मोहनीय कर्म के भेद कषायों के उत्कृष्ट-जघन्य स्थान के दृष्टांत आयु कर्म के भेद नाम कर्म के भेद | नाम कर्म की 14 पिण्ड प्रकृतियाँ शरीर, बंधन, संघात में अन्तर संस्थान के भेद संहनन के भेद किस संहनन सहित मरकर जीव कहाँ जन्म ले सकता है? 170 किस जीव के कौन-सा संहनन होता है? - 11 नाम कर्म की 8 प्रत्येक प्रकृतियाँ आतप, उद्योत, उष्ण नामकर्म में अन्तर | 11 नाम कर्म के 10 जोड़े पर्याप्ति का स्वरूप व भेद अपर्याप्त के प्रकार गोत्र कर्म के भेद 13.. अंतराय कर्म के भेद | 14-20 | मूल कर्म जघन्य उत्कृष्ट स्थिति बंध व आबाधा शेष जीवों की उत्कृष्ट कर्म स्थिति बंध उत्तर प्रकृति उत्कृष्ट स्थिति बंध 169 170 171 11 . . 171 172 172 - 173 173 173 175 176 1761 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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