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(अष्टम अध्याय विषय-वस्तु सूत्र क्रमांक कुल सूत्र पृष्ठ संख्या बंध के कारण
155-156 बंध और बंध के भेद
2-3 | 2 | 157-158 द्रव्य बंध प्रकृति बंध
4-13 | 10 159-173 स्थितिबंध -उत्कृष्ट
14-17
174-177 -जघन्य
18-20
174-175 अनुभाग बंध
21-23
177-179 प्रदेश बंध
24 1
179-180 पुण्य व पाप प्रकृतियाँ
25-26 2 180-181 कुल | 26
मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बन्धहेतवः।।1।। सूत्रार्थ - मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये बन्ध के हेतु हैं।।1।।
बंध के कारण
मिथ्यादर्शन(2) अविरति(12) प्रमाद(15) कषाय(25) योग(15) (अतत्त्वश्रद्वान) (इन्द्रिय विषयों (अच्छे कार्यों (आत्मा (आत्मा के
व प्राणी हिंसा में अनुत्साह) को कसे) प्रदेशों का का त्याग न होना)
परिस्पन्दन)
अगृहीत गृहीत 6 इन्द्रिय (नैसर्गिक) (परोपदेश पूर्वक) अविरति
6 प्राणी अविरति
एकान्त ..
. विपरीत
संशय
विनय
अज्ञान
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