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________________ पञ्चम अध्याय _92 . लोकाकाशेऽवगाहः।।12।। सूत्रार्थ - इन धर्मादिक द्रव्यों का अवगाह लोकाकाश में है।।12।। धर्माधर्मयोः कृत्स्ने।।13।। सूत्रार्थ - धर्म और अधर्म द्रव्य का अवगाह समग्र लोकाकाश में है।।13।। एकप्रदेशादिषु भाज्याः पुद्गलानाम्।।14।। सूत्रार्थ - पुद्गलों का अवगाह लोकाकाश के एक प्रदेश आदि में विकल्प से होता है।।14।। ___ असंख्येयभागादिषु जीवानाम्।।15।। सूत्रार्थ - लोकाकाश के असंख्यातवें भाग आदि में जीवों का अवगाह है।।15।। लोक में अवगाह (द्रव्यों के लोक में रहने का तरीका) जीव र पुद्गल । अधर्म आकाश काल - एक * लोक का * एक प्रदेश समस्त |समस्त | - एक प्रदेश द्रव्य असंख्यातवाँ | (अणु और लोक लोक । (रत्नों की लोक का सूक्ष्म स्कंध) (तिल में | (तिल में , | राशि जैसे) . * संख्यात तेल जैसे) तेल जैसे) बहभाग एवं सर्व | प्रदेश लोक(सिर्फ केवली असंख्यात समुद्घात में) । प्रदेश सर्व | सर्व लोक सर्व लोक सर्व लोक | सर्व लोक - सर्व लोक द्रव्य (लोकाकाश) संख्यामान RSERY भाग संख्यात असंख्यात अनंत मति-श्रुत ज्ञानी जिसे जान सकें अवधिज्ञानी जिसे जान पाएँ मात्र केवलज्ञानी परंतु मति-श्रुत ज्ञानी जिसे जिसे जान पाएँ न जान सकें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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