________________ 1. जैन आगम, दर्शन, पुरातत्व तथा अन्य विषयों के गम्भीर विद्वान एवं लेखक तैयार करना। जैन संस्कृति-सम्बन्धी प्रामाणिक साहित्य का निर्माण एवं प्रकाशन करना। 3. योग्य विद्वानों को श्रमण-संस्कृति का सन्देशवाहक बनाकर देश तथा विदेश में भेजना। भारतीय तथा विदेशी विद्वानों का ध्यान जैन संस्कृति की ओर खींचना। 5. श्रमण-संस्कृति को प्रकाश में लाने के लिए प्रोत्साहन देना। Jain Education International