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४८६ ] उत्तराध्ययन-सूत्र . एक परिशीलन संजय :
यह काम्पिल्य नगर का राजा था। आत्मारामजी ने इसे महावीर का समसामयिक लिखा है। एक बार यह चतुरंगिणी सेना के साथ मृगया के लिए गया। वहाँ अज्ञानवश मुनि की शरण में आए हुए मृगों को मारने के कारण मुनि से क्षमा मांगी। मुनि के उत्तर न देने पर यह डर गया। पश्चात् उन्हीं गर्दभालि मुनि से दीक्षा ले ली। बाद में इनका क्षत्रिय मुनि से समागम हआ जिससे ये और अधिक संयम में दृढ़ हो गए । क्षत्रिय मुनि भी इनसे प्रभावित हुए थे। समुद्रपाल :२
यह पालित वणिक का पुत्र था। इसकी माता पिहुण्डनगर की थी। समुद्रयात्रा करते समय जन्म होने के कारण इसका नाम 'समुद्रपाल' रखा गया था। पिता के द्वारा कहीं से लाई गई रूपवती 'रूपिणी' स्त्री के साथ यह देवसदश भोग भोगा करता था। एक बार वध स्थान को ले जाए जाने वाले वध-योग्य वस्त्रों से विभूषित वध्य ( चोर ) को देखकर वैराग्य हो गया । पश्चात् माता-पिता से आज्ञा लेकर जिनदीक्षा ली और अन्त में मुक्ति को प्राप्त किया । समुद्रविजय :
ये शौर्यपुर के राजा थे । इनकी पत्नी 'शिवा' और पुत्र 'अरिष्टनेमि' था। 'रथनेमि' भी इन्हीं का पुत्र था। ये 'अन्धकवृष्णि' कुल के नेता थे । यह कुल श्रेष्ठकुल माना जाता था। इसीलिए राजीमती रथनेमि को संयम से च्युत होते देखकर उसे उसके इसी कुल की याद दिलाती है। हरिकेशिबल मुनि :४ ___ यह श्वपाक (चाण्डाल) कुलोत्पन्न उग्र तपस्वी जैन मुनि था। एक यक्ष इसकी सेवा किया करता था। इसने यक्ष देवता की प्रेरणा से कोशल राजा के द्वारा दी गई सुन्दरी 'यशा' कन्या को स्वीकार नहीं किया था। एक बार जब यह भिक्षार्थ यज्ञ-मण्डप में गया
१. देखिए-संजय आख्यान, परि० १. २. देखिए-समुद्रपाल, परि० १. ३. उ० २२.३, ३६, ४३-४४, ४. उ० १२.१, ३, ४, ६, १७, २१-२३, ३७, ४०.
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