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________________ ४८२-] मृगा : १ यह सुग्रीव नगर के राजा बलभद्र की पटरानी तथा मृगापुत्र की माता थी । उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन मृगापुत्र : २ इसका जन्म-नाम 'बलश्री' होने पर भी इसकी प्रसिद्धि 'मृगापुत्र' के नाम से हुई । यह माता-पिता को प्रिय था । प्रासाद में स्त्रियों के साथ क्रीड़ाएँ किया करता था । एक बार गवाक्ष से एक साधु को देखने पर जब इसे पूर्वजन्म का ज्ञान हुआ तो इसने अपने माता-पिता से जिन - दीक्षा लेने की अनुमति मांगी। पहले तो माता-पिता ने इसे संसार के भोगों से प्रलोभित करना चाहा परन्तु बाद में इसका दृढ़ संयम देखकर दीक्षार्थ अनुमति दे दी । अन्त में मोक्ष प्राप्त किया । माता-पिता के साथ हुए संवाद में इसने नरकों के कष्ट और साधुधर्म का वर्णन किया ।. महावीर : 3 ये अन्तिम ( चौबीसवें ) तीर्थङ्कर हैं । इनका समय आज से २५०० वर्ष पूर्व ( ई० पूर्व छठी शताब्दी ) था । इन्होंने पार्श्वनाथ के 'चतुर्याम' तथा 'सान्तरोत्तर' धर्म को देश - काल का विचार करके पंचयाम' तथा 'अचेलक' के रूप में परिवर्तित किया था। इनका गोत्र काश्यप था । इन्हें ग्रन्थों में वरदर्शी (प्रधानदर्शी), ज्ञातपुत्र, जिन, वर्धमान, वीर, बुद्ध आदि नामों से सम्बोधित किया गया है । गौतम इनका प्रधान शिष्य था । इनके पिता का नाम 'सिद्धार्थ' और माता का नाम 'त्रिशला' था । १. उ० १६.१ २. २. देखिए - मृगापुत्र आख्यान, परि० १ ३. उ० २३. २३, २६; ३६ २६६ आदि । ४. काश्यप २.४६; ज्ञातपुत्र २६.२६६; बुद्ध १८.३२; २५.३४; ३५.१; वरदर्शी २८.२; वीर २०.४० ; जिन २.६; १०.३२; १४.५२; १८.१६, ३२, ४३, ४७; २१.१२; २२.२८, ३८; २४.३; २८.१-२, १८-१६, २७, ३३; ३६.६०, २६१-२६२; वर्धमान २१.२६. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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