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४७६ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन काशीराज :१ .
इन्हें टीकाओं में 'नन्दन' नामवाले सप्तम बलदेवके नाम से कहा गया है। इन्होंने काम-भोगों को छोड़कर जिन-दीक्षा ली थी। कुन्थु :
ये छठे चक्रवर्ती तथा सत्रहवें जैन तीर्थङ्कर हैं। इक्ष्वाकु कुल में ये वृषभ के समान श्रेष्ठ और विख्यात कीर्तिवाले थे। केशव :
ये शौर्यपुर के राजा वसुदेव के पुत्र वासुदेव (कृष्ण) हैं। ये अंतिम (नौवें) वासुदेव' हैं। ये शंख, चक्र तथा गदा धारण करते थे। ये अप्रतिहत योद्धा भी थे। देवकी इनकी माता थी। इन्होंने ही अरिष्टनेमि की शादी के लिए भोगराज की पुत्री राजीमती की याचना की थी तथा इनके ही मदोन्मत्त हाथी पर आरूढ़ होकर अरिष्टनेमि विवाहार्थ गए थे। ज्येष्ठ होने के नाते इन्होंने अरिष्टनेमि को अभीष्ट फलप्राप्ति का आशीर्वाद
१. उ० १८. ४६. २. नौ बलदेव ये हैं : १. अचल, २. विजय, ३. भद्र, ४. सुप्रभ, ५. सुदर्शन,
६. आनंद, ७. नंदन, ८. पद्म ( रामचन्द्र ) और ६. राम (बलराम). ३. उ०१८. ३६. ४. उ० २२.२, ६, ८, १०, २७; ११. २१. ५, वासुदेव बलदेव के छोटे भाई कहलाते हैं। वासुदेवों की संख्या नौ है
तथा इनके शत्र प्रतिवासुदेवों की संख्या भी नौ है । वासुदेव और प्रतिवासुदेव इस प्रकार हैं : वासुदेव- १. त्रिपृष्ठ, २. द्विपृष्ठ, ३. स्वयम्भू, ४. पुरुषोत्तम,
५. पुरुषसिंह, ६. पुरुषपुण्डरीक, ७. दत्त, ८. नारायण
( लक्ष्मण ) और ६. कृष्ण ( केशव )। प्रति वासुदेव-१. अश्वग्नीव, २. तारक, ३. मेरक, ४. मधुकैटभ,
५. निशुभ, ६. बलि, ७. प्रह्लाद, ८. रावण और ९. जरासन्ध ।
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