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________________ परिशिष्ट १ : कथा-संवाद [ ४७१ गया । एक दिन संजय मुनि के सौम्य रूप को देखकर किसी क्षत्रिय मुनि ने पूछा क्षत्रिय मुनि-तुम्हारा नाम और गोत्र क्या है? तुम मुनि किसलिए बने हो ? आचार्य की सेवा कैसे करते हो और विनीत कैसे कहलाते हो? संजय मुनि-नाम से मैं संजय हूँ। मेरा गोत्र गौतम है। गर्दभालि मुनि मेरे आचार्य हैं। मुक्ति के लिए मुनि बना हूँ और आचार्य के उपदेशानुसार सेवा करता हूँ । अतः विनीत हूँ। ___ संजय मुनि के इस उत्तर से आकृष्ट होकर क्षत्रिय मुनि ने बिना पूछे ही कई बातें बतलाई और प्रसंगवश भरत, सगर आदि बहुत से महापुरुषों के दृष्टान्त दिए जिन्होंने अपनी विपुल सम्पत्ति त्यागकर जिनदीक्षा ली तथा मोक्ष प्राप्त किया। इस तरह इस आख्यान से निम्नोक्त विषयों पर प्रकाश पड़ता है : १. दीक्षा लेने का परिणाम-मुक्ति । २. संसार की असारता । ३. हिंसावृत्ति का त्याग। ४. अभयदाता होना। समुद्रपाल आख्यान :' चम्पा नगरी में भगवान महावीर का शिष्य पालित नाम का वणिक रहता था। वह निर्ग्रन्थ-प्रवचन में विशारद था। एक बार जल-पोत से वह व्यापार के लिए 'पिहुण्ड' नगर गया। वहाँ किसी सेठ ने अपनी कन्या का पाणिग्रहण उसके साथ कर दिया। कुछ समय वहाँ रहने के बाद वह अपनी गर्भवती पत्नी को लेकर स्वदेश लौटा। रास्ते में उसकी पत्नी ने पुत्र का प्रसव किया। समुद्र में पैदा होने के कारण उसका नाम 'समुद्रपाल' रखा गया। धीरे-धीरे युवा होने पर उसने बहत्तर कलाओं तथा नीतिशास्त्र में पाण्डित्य प्राप्त कर लिया। एक दिन उसके पिता ने उसकी शादी रूपिणी १. उ० अध्ययन २१. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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