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उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन
२. सेवा कराने एवं न कराने की अपेक्षा से ' सपरिकर्म' ( जिसमें दूसरों के द्वारा सेवा होती रहती है) और 'अपरिकर्म' ( सेवादि से रहित ) ये दो भेद हैं ।
३. तप करने के स्थान की अपेक्षा से 'नीहारी' ( पर्वत, गुफा आदि में लिया गया मरणकालिक अनशन तप ) और 'अनोहारी ' ( ग्राम, नगर आदि में लिया गया। ये दो भेद हैं । आहार-त्याग दोनों तपों में आवश्यक है ।
२. ऊनोदरी ( अवमोदयं ) तप:
भूख से कम खाना ऊनोदरी तप है । ग्रन्थ में इसका द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और पर्यवचरक की दृष्टि से विचार किया गया है। अतः इसके द्रव्य ऊनोदरी आदि पाँच भेद होते हैं । इनके स्वरूपादि इस प्रकार हैं : १
क. द्रव्य ऊनोदरी - जिसका जो स्वाभाविक आहार है उसमें कम से कम एक ग्रास कम करना द्रव्य ऊनोदरी है ।
ख. क्षेत्र ऊनोदरी - इसका दो प्रकार से वर्णन किया गया है : १. ग्राम, नगर, राजधानी, गृह आदि के क्षेत्र की सीमा निश्चित कर लेना कि अमुक-अमुक क्षेत्र से प्राप्त भिक्षान्न द्वारा ही पेट भरूँगा, २. अमुक प्रकार के क्षेत्र - विशेष से प्राप्त भिक्षान्न द्वारा ही जीवन-यापन करूँगा । इसमें द्वितीय प्रकार के क्षेत्र ऊनोदरी तप के ग्रन्थ में दृष्टान्तरूप से ६ प्रकार गिनाए गए हैं । जैसे : १. पेटा ( पेटिका की तरह आकारवाले घरों से आहार लेना ), २. अर्धपेटा ( अर्धपेटिका की तरह आकारवाले घरों से आहार लेना ), ३. गोमूत्रिका ( गोमूत्र की तरह वक्राकार भिक्षार्थ जाकर आहार लेना ), ४. पतंगवीथिका ( बीच-बीच में कुछ घर छोड़कर भिक्षा लेना ), ५. शम्बूकावर्त ( शंख की तरह चक्राकार जाकर आहार लेना ) और ६. आयतं गत्वा प्रत्यागता ( पहले
१. ओमोयरणं पंचहा समासेण वियाहियं । दव्वओ खेत्तकालेणं भावेणं पज्जवेहि य ।। - उ० ३०.१४.
तथा देखिए - उ० ३०.१५-२४.
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